सगुण और निर्गुण भक्ति में अंतर

सगुण और निर्गुण भक्ति में अंतर

14 वीं से 17 वीं शताब्दी के बीच का काल भक्ति काल कहलाता है। भक्ति परंपरा को दो मुख्य वर्गों में विभाजित किया गया है- निर्गुण और सगुण। निर्गुण भक्ति और सगुण भक्ति का आधार मुख्यतः भक्तों के हृदय में उनके इष्ट/ आराध्य का स्वरूप है। निर्गुण और सगुण भक्तों में एक महत्वपूर्ण समानता है कि वे आस्तिक है, ईश्वरीय शक्ति/ब्रह्म शक्ति को किसी ना किसी रूप में मानते हैं। आइए अंतर भी जाने।

परमात्मा का स्वरूप– निर्गुण संतो के अनुसार परमात्मा निराकार है , अर्थात परमात्मा का कोई रंग, रूप , गुण और जाति नहीं होती है। कबीर के अनुसार ब्रह्म सर्व व्यापक , सर्वशक्तिमान और सर्वज्ञ है। निर्गुण संतो के अनुसार-

दशरथ सुत तिहुं लोक बखाना। राम नाम का मरम न जाना।। अर्थात तीनों लोकों में जिन्हें दशरथ के पुत्र के रूप में माना जाता है उस राम का असली ब्रह्म स्वरूप कोई नहीं जानता। निर्गुण भक्ति धारा ज्ञान मार्ग की धारा थी। निर्गुण राम जपहु रे भाई, अविगत की गति लखी न जाई।। मलूक दास निर्गुण परमात्मा को अपने भीतर खोजने का उपदेश देते हैं। सगुण भक्ति में ब्रह्म के साकार रूप को उपासना का लक्ष्य बनाया। विष्णु के अवतार के रूप में राम , कृष्ण भक्ति दो शाखाएं अस्तित्व में आई। इन्होंने संसार में निवृत्ति का मार्ग भक्ति को माना। कृष्ण काव्य में प्राय सभी कवियों ने कृष्ण के रास और प्रकृति की शोभा का चित्रण किया है। तुलसीदास जी ने निर्गुण और सगुण के विवाद को समाप्त करते हुए राम को बार-बार निर्गुण और सगुण बताया है –

सगुनहि अगुनहि नहिं कछु भेदा। गावहिं मुनि पुरान बुध बेदा॥
अगुन अरूप अलख अज जोई। भगत प्रेम बस सगुन सो होई॥

भावार्थ-सगुण और निर्गुण में कुछ भी भेद नहीं है – मुनि , पुराण , पंडित और वेद सभी ऐसा कहते हैं। जो निर्गुण , अरूप (निराकार) , अलख(अव्यक्त) और अजन्मा है, वही भक्तों के प्रेमवश सगुण हो जाता है।

साधना का पथ -निर्गुण संत योग , प्रेम और भक्ति को महत्व देते हैं। इसी के अंतर्गत इन्होंने कुंडलिनी चक्र , अनाहत नाद आदि की चर्चा भी की है। निर्गुण संत मन की शुद्धता पर विशेष बल देते हैं। रैदास जी ने कहा है ” मन चंगा तो कठौती में गंगा “अर्थात यदि मन के भाव पवित्र हैं , तो चमड़े की कठौती में भी गंगा समा सकती है। कबीर जी ने कहा “ढाई अक्षर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय “। अर्थात जाति , धर्म , ऊंच-नीच का भेद भुलाकर प्रेम को महत्व दो। वही सगुण भक्ति में परमानंद दास जी ने कहा है – 

आनंद की निधि नंदकुमार। परम ब्रह्म भेष निराकृत जगमोहन लीला अवतार।।

श्री कृष्ण ही पूर्ण परब्रह्म है और उन्हीं से संपूर्ण जगत का सृजन हुआ है। यह ब्रह्म भक्तों के हेतु अवतार धारण करते हैं। राम नंद जी के द्वारा रचित कुछ पद बहुत प्रसिद्ध है जैसे-आरती कीजै हनुमान लला की, दुष्ट दलन रघुनाथ कला की। सगुण भक्ति में नित्य ध्यान , कीर्तन , तिलक, तीर्थ , मूर्ति पूजा , धार्मिक अनुष्ठान को महत्व दिया जाता है।

सामाजिक भूमिका– कबीर जी ने जाति पांति , छुआछूत , ऊंच-नीच , कर्म कांडों , मूर्ति पूजा और बाह्य आडंबरओं का घोर विरोध किया। साथ ही साथ वह पंडितों व मुल्लाओं को चुनौती भी देने लगे। कबीर जी ने कहा-

कांकर पाथर जोरि के ,मस्जिद लई चुनाय।
ता उपर मुल्ला बांग दे, क्या बहरा हुआ खुदाय।।
इस्लाम धर्म के आडंबरों पर कटाक्ष।
पाहन पूजे हरि मिले, तो मैं पूजूँ पहार।
ताते ये चाकी भली, पीस खाय संसार।।
हिंदू धर्म के आडंबरों पर कटाक्ष।
उन्होंने समाज के हर वर्ग को सम्मानित स्थान दिलाने का प्रयास किया
हरि को भजे, सौ हरि का होई।।

इसी प्रकार सगुण भक्ति ने भी समाजिक परिवेश के सुधार लिए महत्वपूर्ण योगदान दिया। भजन , कीर्तन मे सभी वर्गों के लोग मिलजुल भाग लेते थे। इस प्रकार ऊंच-नीच , जाति प्रथा , धार्मिक कट्टरपंथी पर गहरी आघात हुई। रसखान और रहिम जैसे मुस्लिम संतो ने कृष्ण भक्ति को एक नवीन दृष्टिकोण प्रदान किया। सूरदास का गायन सुनने के लिए अकबर भी भेष बदलकर आया करते थे।

शाखाओं का वर्णन– नामदेव संत , ज्ञान मार्गी साहित्य की नींव रखने वालों में बहुत महत्वपूर्ण है ।कबीर , रैदास , गुरु नानक देव आदि ने राम , माधव , अल्लाह , खुदा आदि नामो को एक ब्रह्म सत्य ही बताया। धार्मिक अंधविश्वास , रूढियो का खंडन किया और शास्त्र ज्ञान पांडित्य भक्ति को राह का रोड़ा माना। प्रेम मार्गी शाखा में सूफी , फकीरों ने अपने प्रेमाख्यानो द्वारा हिंदू-मुस्लिम जनता के हृदय को जीतने का मनोवैज्ञानिक ढंग अपनाया। उन्होंने इहलौकिक प्रेम और अलौकिक प्रेम पर अनेक काव्य रचनाएं लिखी। इनके अनुसार प्रेम वह साधन है, जिसकी द्वारा आत्मा परमात्मा को पा सकती है। सगुण कृष्ण भक्ति में कृष्ण , राधा , यशोदा , गोपियां , बाल सुलभ क्रीड़ाएं ,  वात्सल्य, यमुना , कालिंदी कुंज आदि में इनका पूरा संसार समाहित है।

जब मैं था तब हरि‍ नहीं, अब हरि‍ हैं मैं नाहिं।
प्रेम गली अति साँकरी, तामें दो न समाहिं।।

प्रेम की गली में कृष्ण के अलावा और किसी के लिए कोई जगह नहीं है। इसी प्रकार सगुण राम भक्ति में श्री राम को अवतारी रुप में अंकित किया है और उनकी लीलाओं का वर्णन है।

difference सामान्य जानकारी