नयनार और अलवार संतों में अंतर

नयनार और अलवार संतों में अंतर

नयनार (शैव भक्त) और अलवार (वैष्णव भक्त) दोनों ही हिंदू धर्म के देवता शिव और विष्णु के परम उपासक हैं। यह तमिलनाडु में अपने-अपने देवताओं का गुणगान करते हुए भ्रमण किया करते थे। इन्होंने बहुत से स्थानों पर बहुत विशाल और सुंदर मंदिर बनवाए। चोल शासकों से इन दोनों प्रकार के संतो को संरक्षण प्राप्त था। संतो द्वारा लिखे गए (तमिल और तेलुगू भाषा) गीतों को मंदिरों में उत्सवों और अन्य धार्मिक कार्यक्रमों में भजनों के रूप में गाया जाता है। इन्हीं संतो ने भक्ति आंदोलन का संचालन किया।

नयनार और अलवार संतों में अंतर

भक्ति आंदोलन मध्यकाल में कई हिंदू संतो और सुधारको ने समाज में धार्मिक सुधार लाने के लिए यह आंदोलन चलाया। इसका सूत्रपात महान सुधारक शंकराचार्य जी ने किया। दक्षिण भारत से प्रारंभ हुआ यह आंदोलन धीरे धीरे संपूर्ण भारत में फैल गया। विभिन्न संत ,विभिन्न क्षेत्रों में इसके ध्वजा वाहन बने जैसे -चैतन्य महाप्रभु , तुकाराम , नामदेव , त्रिलोचन , मीराबाई , पीपा , तुलसीदास , गुरु नानक देव और कबीर। इस आंदोलन की मूल भावना प्रेम और श्रद्धा थी।

भक्ति आंदोलन के प्रमुख सिद्धांत

  1. मानवतावादी दृष्टिकोण– जन्म, लिंग, जाति, धर्म के आधार पर मानव-मानव के मध्य में भेदभाव अनुचित माना।
  2. रूढ़ियों के प्रति विरोध– अंधविश्वास ,आडंबरों, धार्मिक पाखंडों कर्मकांडों की खुलकर निंदा की।
  3. आत्मा-परमात्मा– भक्ति मार्ग द्वारा आत्मिक रूप से स्वयं की पहचान और परमात्मा को प्राप्त किया जा सकता है।
  4. जाति प्रथा का विरोध– संतो ने कर्मों के आधार पर व्यक्ति का आंकलन पर बल दिया। उदाहरण-
    • ऊंचे कुल का जनमिया, करणी ऊंच न होइ।
    • सुबरण कलश सुरा भरा, साधु निंदा सोई।।
    • भावार्थ-ऊंची जाति में जन्म लेने पर भी यदि कर्म अच्छे नहीं है तो वह व्यक्ति श्रद्धेय नहीं हो सकता। जिस प्रकार यदि सोने के घड़े में मदिरा भर जाए तो, समझदार व्यक्ति उसकी निंदा ही करेंगे।
  5. समाज सुधार– सभी संतो ने सामाजिक कुरीतियों का विरोध किया। सती प्रथा , जाति प्रथा , कन्या वध , दास प्रथा , बाल विवाह , जाति पाति आदि सामाजिक बुराइयों को सुधारने का यथासंभव प्रयास किया।

भक्ति आंदोलन के धार्मिक प्रभाव

  1. हिंदू धर्म की रक्षा- बौद्ध धर्म , जैन धर्म और इस्लाम धर्म के कारण हिंदू धर्म धीरे-धीरे पतन की ओर जा रहा था। भक्ति आंदोलन ने हिंदू धर्म के पतन को रोका और सुधारवादी नीतियों से उसे पुनः लोकप्रिय बना दिया।
  2. ब्राह्मणों के प्रभाव में कमी- भक्ति आंदोलन में विभिन्न आडंबरों , पाखंडों, कर्म कांडों का विरोध हुआ जिससे हिंदू समाज में ब्राह्मणों का प्रभाव कम हो गया।
  3.  इस्लाम के प्रसार में बाधा- गुरु नानक देव और कबीर जी जैसे संतों ने ईश्वर एक है जैसे सिद्धांतों को अपनाकर और मूर्ति पूजा , जात- पात का खंडन कर मानवता का प्रचार प्रसार किया। जिसके कारण लोगों ने इस्लाम धर्म अपनाने की आवश्यकता महसूस नहीं की।
  4. सिख धर्म का उदय- भक्ति आंदोलन इस धर्म के उदय का प्रमुख कारण था। गुरु नानक देव जी और उनके उत्तराधिकारियों ने 1699 ईस्वी में एक अलग धर्म “सिख धर्म ” बनाया।
  5. बौद्ध मत का पतन- प्राचीन काल में बौद्ध धर्म के कारण हिंदू धर्म का पतन होने लगा परंतु भक्ति आंदोलन के कारण हिंदू धर्म पुनःप्रगति करने लगा।
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