मेगस्थनीज – यूनानी राजदूत (मौर्य काल)

मेगस्थनीज एक यूनानी राजदूत था जिसे सेल्यूकस निकेटर ने चंद्रगुप्त के दरबार (मौर्य साम्राज्य) में एक संधि के तहत भेजा था।मेगास्थनीज एक राजपूत ही नहीं वरन एक इतिहासकार भी था।इनका जन्म 350 ईसा पूर्व में हुआ।भारत में आने से पूर्व वह आरकोसिया छत्रप के दरबार में भी राजदूत रहे।मेगास्थनीज 46 वर्ष की आयु में भारत आए। यहां लगभग 5 वर्ष (संभवत 304-299 ईसा पूर्व) के बीच पाटलिपुत्र (पालिब्रोथा) में निवास किया तथा अपनी पुस्तक इंडिका(Indica) को लिपिबद्ध किया।हालांकि आज इस पुस्तक  की मूल प्रति प्राप्त नहीं है, परंतु काफी अंश अनेक यूनानी -रोमीय लेखकों की रचना से प्राप्त हुए हैं। इन लेखकों के नाम है- एरियन, स्ट्रेबो, प्लिनी।
मेगस्थनीज

इंडिका का वर्णन

मेगस्थनीज की पुस्तक इंडिका में मौर्य काल की समृद्धि, वैभव, सामाजिक, राजनीतिक, धार्मिक, व्यापारिक, प्रशासनिक व सैनिक क्रियाकलापों  का सुंदर और सजीव वर्णन मिलता है।

  1. राजा का वर्णन – राजा चंद्रगुप्त मौर्य अपना प्रशासन कुशल मंत्री मंडल की सहायता से चलाते थे। साथ ही साथ राजा जनता की समस्याओं के प्रति सजग रहते थे।दंड के नियम काफी कठोर थे।साम्राज्य में शांति का वातावरण रहता था, अपराध बहुत कम होते थे।लोग घरों का ताला नहीं लगाते थे।सम्राट अपनी सुरक्षा के प्रति भी सजग रहते थे। राज प्रसाद में कलाकारों, लेखकों, शिक्षकों, और व्यापारियों को सम्मान दिया जाता था।
  2. राजधानी का वर्णन – मौर्य साम्राज्य की राजधानी पाटलिपुत्र जो गंगा तथा सोन नदियों के संगम पर बसा हुआ, एक बड़ा नगर था।सोलह महाजनपदों में यह नगर सबसे सुरक्षित किलें बंद और सब सुविधाओं से परिपूर्ण था।
  3. जनता का वर्णन – इंडिका के अनुसार भारत की जनता शांत, संतोषी थी।यह लोग साहसी, सत्यवादी और सादा जीवन जीते थे।प्रमुख भोजन गेहूं, चावल और जौं था।जनता आत्मनिर्भर और अधिकतर कृषि प्रधान लोग थे।
  4. समाज का वर्णन – भारतीय समाज कई वर्गों ,जातियों, जनजातियों में बंटा हुआ था।इंडिका के वर्णन के अनुसार भारत में लगभग 7 जातियां और 118 जनजातीय है।इसके साथ उन्होंने सात वर्गों का भी वर्णन किया जैसे- दार्शनिक, योद्धा ,मंत्री ,व्यापारी/ शिल्पी, शिकारी /पशुपालक और निरीक्षक।समाज में सामूहिक भोज का आयोजन नहीं होता था।हालांकि लोग बहुत अधिक सामाजिक नियमों के प्रति कट्टर नहीं थे।इंडिका में दास व्यवस्था ,सती प्रथा का वर्णन नहीं है।इसमें दक्षिण भारत में मातृ सत्तात्मक समाज का भी उल्लेख है।अतः इससे सिद्ध होता है कि महिलाओं की स्थिति काफी अच्छी थी।बहु विवाह का प्रचलन न के बराबर ही था।हिंदू विवाह के प्रकार व रिवाज मान्य थे।आर्ष विवाह प्रचलन में था।
  5. धार्मिकता का वर्णन – इस ग्रंथ में उन्होंने भारतीय समाज को यूनानी देवताओं की पूजा करते हुए लिखा।हालांकि वर्णन से सिद्ध होता है, शिव और कृष्ण की पूजा के विषय में ही लिखा गया है।उन्होंने इनके नाम डिओनिसियस और हेराक्लीज संबोधित किए। अपने ग्रंथ में उन्होंने ब्राह्मणों और साधुओं के ज्ञान की भी काफी प्रशंसा की।
  6. व्यापार का वर्णन – चंद्रगुप्त के शासनकाल में व्यापारियों को विशेष सम्मान और सुरक्षा दी जाती थी।सोलह जनपद सड़क से जुड़े हुए थे जिनकी सैनिको द्वारा सुरक्षा की जाती थी।मगध,सोन व गंगा नदी के किनारे था और भारत में लगभग 58 नदियां का जाल बिछा हुआ था।अतः नदियों की सहायता से भी व्यापार चरम सीमा पर पहुंचा हुआ था।लोग ब्याज पर कार्य नहीं करते थे।व्यापारी वर्ग अपना ही एक अलग समाज बनाकर रखता था।अधिकता व्यापार लोहे के हथियार ,औजारों ,हाथियों , सोना व चांदी, अनाज, कपड़ा और रेशम का होता था।
  7. कृषि का वर्णन – नदियों के किनारे  होने के कारण यहां की जमीन बहुत ही उपजाऊ थी।लोहे के हलों का प्रयोग करने के कारण कृषि बहुत ही अच्छी होती थी।गेहूं, जौं और चावल यहां के मुख्य अनाज थे।यहां कभी भी अकाल नहीं पड़ता था।कृषक काफी धनी व कभी-कभी बड़े व्यापारी भी होते थे।
  8. पशुपालन व्यवस्था का वर्णन – इस काल में पशुपालन व्यवस्था पर विशेष ध्यान दिया गया था।जो भूमि कृषि योग्य नहीं थी, उसे पशु चराने के लिए प्रयोग किया जाता था।इसे  सरकार द्वारा गडरियो और पशुपालकों की भलाई के लिए क्या जाता था। व्यवसाय की दृष्टि से गडरियो को तीसरा स्थान दिया गया था।अतः तत्कालिक राज्यों ने कृषि के अतिरिक्त पशु पालन पर विशेष ध्यान दिया।
  9. साहित्य और शिक्षा का वर्णन – मौर्य शासन काल में साहित्य और शिक्षा का बहुत प्रचार प्रसार हुआ।तक्षशिला में एक बड़ा विश्वविद्यालय था, जहां पर साहित्य, दर्शन तथा विज्ञान की शिक्षा दी जाती थी।इस काल में पाली, प्राकृत और अध्रमागधी भाषाओं का बहुत प्रयोग होता था।यूनानी लोग काफी अचंभित थे कि भारत के लोग कपड़ों पर लिखते हैं।
  10. प्रशासन का वर्णन – मौर्य साम्राज्य के प्रांत ,जिलों में विभाजित किए गए थे।इन जिलों को जनपद कहा जाता था।इन के तीन प्रमुख अधिकारी होते थे, जो सीधे सम्राट के प्रति उत्तरदाई होते थे।प्रत्येक नगर में  न्यायपालिका और तीन सदस्यों की कमेटी होती थी, जो वहां की समस्याओं का निदान करती थी।गांव का प्रशासन ग्रामीणों द्वारा चलाया जाता था।ग्रामीणों की सहायता के लिए व्यक्तियों की समिति होती थी ,जो गांव के प्रत्येक कार्य व व्यक्ति पर नजर रखते थे।साथ ही साथ मौर्य सम्राट की गुप्तचर प्रणाली भी बहुत सक्रिय थी।

मेगस्थनीज (304 से 299 ईसा पूर्व) भारत में रहे। इनकी पुस्तक “इंडिका” मगध के विकास गाथा को  बताने का एक बहुमूल्य ऐतिहासिक  स्रोत है।

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