भाषा , मातृभाषा , राजभाषा और राष्ट्रभाषा में अंतर

राष्ट्रभाषा विहीन – राष्ट्र

भाषा , मातृभाषा , राजभाषा और राष्ट्रभाषा में अंतर
विश्व में भारत एक ऐसा स्वतंत्र देश है जिसकी कोई राष्ट्रभाषा नहीं है। विभिनता में एकता दर्शाने वाला देश अपनी भावनाओं और विचारों को दर्शाने के लिए एक भाषा का चयन तक ना कर सका। विभिनता ही रह गई एकता कहां है। बात निकलेगी तो दूर तलक जाएगी। गुलामी की आदत शायद इस कदर हो गई कि हम आजाद रहना भूल गए। अपनी सभ्यता, संस्कृति ,धरोहर को पहचानने में ओर अपनाने में हमें शर्म महसूस होने लगी। हालांकि आज समय बदल गया है केंद्र की सरकार हिंदी के पक्ष में है। परंतु लंबे विवाद के कारण हिंदी के पक्ष में गहरी खाई खुद चुकी है। जिसे पाटना बड़ी टेढ़ी खीर है। हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा बने ऐसे शुभ और सकारात्मक विचार और सुनहरे सांस्कृतिक अखंड भविष्य की कामना और संकल्प ही इस समस्या का कोई समाधान निकाल सकता है।

महापुरुषों के विचार-

  • भाषा हमें इसलिए दी गई थी कि हम एक दूसरे से रुचिकर बातें कह सकें। -बॉर्बी
  • सच्चे की भाषा सदा सरल होती है।
  • भाषा केवल विचार की वाहक ही नहीं है ,बल्कि चिंतन का एक महान एवं सक्षम यंत्र भी है। – सर एच डेव 
  • भाषा प्रेषणीयता का सर्व सुलभ साधन है। केदारनाथ सिंह
  • सभ्यता की भाषा में यह खास दिक्कत है  कि सब जगह और सब तरह के लोग इसे समझ नहीं पाते ,और असभ्यता की भाषा को यह शान हैं कि उसे सब जानते हैं। -रविंद्रनाथ ठाकुर
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