स्वचिंतन और परचिंतन में अंतर

स्वचिंतन और परचिंतन में अंतर

जहां स्वचिंतन है, वहां आत्मसम्मान है।

जहां परचिंतन है ,वहां आत्मघात है।।

स्वचिंतन और परचिंतन  में अंतर
स्वचिंतन का अर्थ – स्वचिंतन का अभिप्राय आत्म चिंतन से हैं अर्थात आत्म उत्थान , आत्म बल, आत्म विकास के लिए सजग रहना। स्वचिंतन करने वाला व्यक्ति सद्गुणों का कोष होता है। वह अपना और दूसरों का कल्याण करने में समर्थ होता है। जो सक्षम होगा वही किसी की मदद कर सकता है। अधिकतर लोग स्वचिंतन का अभिप्राय मतलबी/self centre मान लेते हैं जो कि बिल्कुल सही नहीं है।
परचिंतन का अर्थ  – पर+ चिंतन अर्थात दूसरों के बारे में सोच विचार करना। जो लोग अधिकतर अन्य व्यक्तियों की ही बातें करते रहते हैं वह लोग परचिंतन करने वाले होते हैं। परचिंतन का अर्थ दूसरों की चिंता करने वाले नहीं बल्कि अपनों और दूसरों का समय व शक्ति खराब करने वाले लोग होते हैं। ऐसे लोग अधिकतर तुलना  ,चुगली , ईर्ष्या , द्वेष आदि की भावना रखते हैं।

स्वचिंतन के लाभ और परचिंतन से हानि

  1. सफलता और असफलता का मूल – यदि व्यक्ति स्वचिंतन करके अपनी योग्यता, क्षमता  और कौशल को सुधारेगा तो निश्चित ही उसे सफलता मिलेगी। सफलता का पहला रहस्य आत्मविश्वास है।वहीं यदि व्यक्ति दूसरों पर ध्यान केंद्रित रखेगा, तो निंदा और असफलता के सिवाय उसके हाथ कुछ नहीं लगेगा।
  2. शारीरिक सामर्थ्य और क्षीणता का कारण – परचिंतन के कारण व्यक्ति तनाव ग्रस्त और हीन भावना के कारण कई रोग लगा लेता है। वही स्व चिंतन स्वास्थ्य का खजाना है। स्वचिंतन के कारण व्यक्ति में  संस्कार , सद्बुद्धि तथा संतोष जैसे पवित्र गुण पनपते हैं जिससे वह पर  प्रसन्न चित्त , स्वस्थ रहता है।
  3. मनोस्थिति पर प्रभाव – स्वचिंतन और परचिंतन का मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव पड़ता है क्योंकि यह विचारों की आवर्ती को प्रभावित करते हैं। अतः मन की स्थिति भी प्रभावित होती है। परचिंतन करने से व्यक्ति के मन में अशांति उत्पन्न होती हैं वही आत्म चिंतन करने से आत्मविश्वास की भावना बढ़ती है।
difference