सहिष्णुता यदि एक गुण है तो स्वीकार्यता एक महागुण है। सहिष्णुता यदि आत्म नियंत्रण, आत्म संयम को प्रर्दशित करती है। वही स्वीकार्यता हमारी आत्मशक्ति , आत्मबल का रूप है। सहनशीलता, स्वीकार्यता एक गुण है परंतु इनकी भी एक निश्चित सीमा होती है। जैसा कि शास्त्रों में वर्णित है “अति सर्वत्र वर्जते है ” यदि व्यक्ति अन्याय, अत्याचार, अपराधों को सहन , स्वीकार कर ले तो वह स्वयं और समाज के लिए हितकारी नहीं होगा। आइए इन दोनों के अंतर को जाने –