सहनशीलता / सहिष्णुता तथा स्वीकार्यता में अंतर

सहिष्णुता यदि एक गुण है तो स्वीकार्यता एक महागुण है। सहिष्णुता यदि आत्म नियंत्रण, आत्म संयम को प्रर्दशित करती है। वही स्वीकार्यता हमारी आत्मशक्ति , आत्मबल का रूप है। सहनशीलता, स्वीकार्यता एक गुण है परंतु  इनकी भी एक निश्चित सीमा होती है। जैसा कि शास्त्रों में वर्णित है “अति सर्वत्र वर्जते है ”  यदि व्यक्ति अन्याय, अत्याचार, अपराधों को सहन ,  स्वीकार कर ले तो वह स्वयं और समाज के लिए हितकारी नहीं होगा। आइए इन दोनों के अंतर को जाने –

सहनशीलता(TOLERANCE) तथा स्वीकार्यता(ACCEPTANCE)  अंतर (INFOGRAPHIC)
सहनशीलता और स्वीकार्यता का गुण और अवगुण होना परिस्थितियों पर निर्भर करता है। अधिकांश संदर्भ में इन्हें एक सद्गुण ही माना जाता है। परंतु विपरीत परिस्थितियों में यह भय, आत्मदया, कायरता, असमर्थता को प्रदर्शित करता है। यदि किसी के अत्याचारों को सहन कर रहे हो तो ,यह सहनशीलता का नहीं डर और कायरता को प्रदर्शित करता है ।
क्षमाशील हो रिपु-समक्ष
तुम हुये विनत जितना ही
दुष्ट कौरवों ने तुमको
कायर समझा उतना ही।
अत्याचार सहन करने का
कुफल यही होता है
पौरुष का आतंक मनुज
कोमल होकर खोता है।
इसी प्रकार यदि अपनी असफलताओं को स्वीकार करके सफलता का प्रयास न किया तो वह तुम्हारी असमर्थता को प्रदर्शित करती है ।
सहनशीलता, क्षमा, दया को
तभी पूजता जग है
बल का दर्प चमकता उसके
पीछे जब जगमग है।-रामधारी सिंह दिनकर।
कविता की उक्त पंक्तियों से आपको यह स्पष्ट हो गया होगा कि किस प्रकार स्वीकार्यता और सहनशीलता के सकारात्मक और नकारात्मक प्रभाव होते हैं।

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