चिंता से मुक्ति के 10 उपाय

चिंता चिता समान अर्थात चिंता ग्रस्त व्यक्ति मृतक (ना उम्मीद) के समान होता है। चिंता एक धीमा जहर है जो व्यक्ति को शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक, आर्थिक और सामाजिक रूप से धीरे धीरे कमजोर कर देता है। अतः जरूरी है कि हम चिंता को चिंतन में बदले।अर्थात चिंता ना कर के चिंतन/भक्ति/आस्था करें।
चिंता से मुक्ति के उपाय

चिंता का मूल कारण क्या है – 

चिंता के बहुत से कारण हो सकते हैं जो व्यक्तियों की परिस्थितियों पर निर्भर करते है।जैसे- धन का अभाव, अस्वस्थ होना, सामाजिक कारण, भविष्य के प्रति डर, ईर्ष्या , द्वेष, हीन भावना, तुलना करना, सद्गुणों का अभाव ,व्यसन(बुरी आदतें)होना, दिखावे की आदतें, हानि, अपमान , असफलता, उम्मीद  न होना, नास्तिक होना और नकारात्मक विचारों का बार-बार आना।

चिंता के प्रभाव

  • शारीरिक स्वास्थ्य पर प्रभाव-चिंता ग्रस्त व्यक्ति धीरे धीरे शुगर, ब्लड प्रेशर ,थायराइड और हार्ट पेशेंट बन जाता है। इसके अलावा शरीर का जो अंग कमजोर होता है। वह इससे बहुत जल्दी प्रभावित हो जाता है।
  • मानसिक शक्ति पर प्रभाव-चिंता ग्रस्त व्यक्ति कि स्मरण शक्ति कमजोर हो जाती है, बौद्धिक योग्यता मंद हो जाती है और निर्णयात्मक शक्ति पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है।
  • भावनात्मक स्वास्थ्य पर प्रभाव-चिंता ग्रस्त व्यक्ति भावनात्मक रूप से निराश, उत्साह हीन,अति संवेदनशील ईर्ष्यालु , झगड़ालू और क्रोधी स्वभाव के हो जाते हैं।
  • आर्थिक रूप से प्रभाव-चिंता ग्रस्त व्यक्ति धैर्य हीन, भविष्य को लेकर आशंकित ,भय युक्त और संशय करने वाला हो जाता है अतः वह कोई भी नई शुरुआत ,योजना प्रारंभ करने से डरता है। जिसके कारण उसे आर्थिक हानि उठानी पड़ती है।
  • सामाजिक प्रभाव- चिंता ग्रस्त व्यक्ति एकांत प्रिय हो जाता है, वह सांस्कृतिक, धार्मिक समारोह में भाग नहीं लेता क्योंकि वह धीरे-धीरे नास्तिक होता जाता है।नकारात्मक दृष्टिकोण के कारण वह सबसे अलग व दूर रहने का प्रयास करता है। 

अतः जरूरी है चिंता न कर के चिंतन करें।

जाहि विधि राखे राम ,ताहि विधि रहिए।।
तुलसी भरोसे राम के, निश्चित होकर सोए।
अनहोनी होनी नहीं, होनी होय सो होय।। 

इन पंक्तियों का मुख्य आशय – धैर्यवान, सहनशील, संतोषी, समर्पण भाव, प्रेम भाव, क्षमाशील, कर्तव्य परायण, कृतज्ञ और आशावाद होकर सरल जीवन जिए।
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