विवेक, ज्ञान और विद्या में अंतर

 विवेक, ज्ञान और विद्या- ये तीनों जहां मिलते हैं वहां सर्वश्रेष्ठ अविष्कार होता है।

विवेक, ज्ञान और विद्या लगभग समानार्थक शब्द ही है परंतु इनमें कुछ व्यवहारिक अंतर है। जिन्हें चित्र के द्वारा दर्शाया गया है।

विवेक, ज्ञान और विद्या में अंतर

विवेक – विवेक एक सहज बुद्धि है जो हर प्राणी मात्र में होती है। अपने ज्ञान और अनुभव से उचित निर्णय लेने वाला व्यक्ति विवेकी होता है। भले बुरे का ज्ञान, विपरीत परिस्थितियों में धैर्य और साहस भी विवेक द्वारा ही संभव है। इसके लिए कोई प्रशिक्षण की आवश्यकता नहीं होती।

ज्ञान – ज्ञान अर्जित किया जाता है चाहे स्रोत कोई भी हो। ज्ञान अर्जित करने से व्यक्ति की निर्णय क्षमता बढ़ जाती है। पूर्ण ज्ञान के 4 अंश है – विवेक शीलता, न्यायप्रियता, वीरता और सच्चरित्रता। बोधगया में महात्मा बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। अतः ज्ञानी व्यक्ति अपने और दूसरों के जीवन में सकारात्मक परिवर्तन लाने में सक्षम होता है।

विद्या – जानने का भाव, इल्म, विद्या का भाग है। गुरु शिष्य परंपरा द्वारा विद्या अर्जित की जाती है। विद्या विभिन्न संस्था द्वारा प्राप्त की जाती है जैसे- विद्यालय, कॉलेज , मदरसा या अन्य कोई संस्था। विद्या का स्तर और मापदंड भी होता है।व्यक्ति अपनी क्षमता और योग्यता के अनुसार इसका स्तर निश्चित कर सकता है।

महापुरुषों द्वारा परिभाषित –

  1. जिज्ञासा के बिना ज्ञान नहीं मिलता।
  2. चरित्र की शुद्धि ही सारे ज्ञान का ध्यये होती है। – गांधीजी
  3. विद्या ही निर्धन का धन है।
  4. बेहतर जिंदगी का रास्ता सिर्फ किताबों से होकर जाता है। – शिल्पायन
  5. विद्या अर्जित की जाती है , ज्ञान प्राप्त होता है और विवेक सहज उत्पन्न होता है।
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