- सुने अधिक, बोले कम -जहां एक शब्द से काम चले वहां दो मत बोलो। बिना सोचे समझे बोलना ऐसा ही है जैसा कि लक्ष्यहीन गोली चलाना।
- निराशा तम है, आशा दीपक -जो आशा में जीवित रहता है, वह बिना संगीत के नृत्य करता है। जब तक आस है, जब तक सांस है। इसलिए व्यक्ति को हमेशा आशावादी रहना चाहिए।
- जैसा अन्न-वैसा मन -शास्त्रों के अनुसार प्रथम सुख निरोगी काया यदि इस काया में जंक अर्थात कूड़ा डालेंगे तो उस कूड़े की सफाई के लिए हमें दवाइयों और डॉक्टरों की मदद लेनी पड़ेगी।
- शिकायत नहीं, प्रशंसा करो -कमियां निकालने की मानसिकता को छोडों ,प्रशंसा की आदत डालो। जब ईश्वर ही 100% सही नहीं हो सकता तो मानव तो मानव है। अतः दृष्टिकोण में परिवर्तन लाएं वही आपके स्वास्थ्य के लिए अच्छा है।
- रिश्तो का आधार विश्वास -संदेह सच्ची मैत्री का हलाहल है। समाज के सभी रिश्ते नातों का आधार विश्वास ही है।अतः विश्वास की डोरी को कभी टूटने नहीं देना चाहिए और उसे पकड़ के रखना चाहिए।
- आलस पाप, मेहनत पुण्य -जो आलसी होते हैं वह सदा समय की प्रतीक्षा में बैठे रहते हैं ऐसे लोगों को कभी अपना लक्ष्य प्राप्त नहीं होता। वही मेहनत समस्त संपत्ति एवं संस्कृति का स्रोत है।मेहनत के बिना कोई भी वस्तु वृद्धि को प्राप्त नहीं कर सकती।
- कल्पना में नहीं वास्तविकता में जियो -कल्पना की उड़ान बहुत ऊंची और सुखमय होती है, परंतु वास्तविकता की जमीन बहुत कठोर और सख्त होती है। व्यक्ति को जीवन की सच्चाई का सामना करते हुए धरती पर ही पैर रखने चाहिए क्योंकि कल्पना में उड़ोगे तो जोर से नीचे गिरोगे।
- चिंता कम, चिंतन ज्यादा -चिंता एक धीमे जहर (slow poison)की तरह मनुष्य को अंदर ही अंदर खोखला करता चला जाता है।जो हमारे हाथ में है वह कार्य करो और जो नहीं है वह प्रभु पर छोड़ दो।इस तरह चिंतन (ध्यान)करो और चिंता का कार्य अपने इष्ट देव पर छोड़ दो। मानसिक शांति का यही एकमात्र उपाय है।
- नफरत को प्रेम से जीतो -नफरत एक नकारात्मक भाव है जो ईर्ष्या ,द्वेष,संशय,निराशा और आत्म दया को दर्शाते हैं। प्रेम और स्नेह द्वारा ही इस मानसिक रोग का इलाज संभव है। प्रेम, युद्ध में अजेय है।
- क्रोध मूर्खता, शांति पूर्णता -क्रोध एक पागलपन है। क्रोध का एकमात्र उपाय क्षमा, ध्यान और शांति है। क्रोध हवा का वह झोंका है जो बुद्धि के दीपक को बुझा देता है, अतः शांत चित्त होकर निर्णय लेना चाहिए।
- साथी हाथ बढ़ाना -विपत्ति में ही इंसान की पहचान होती हैं ऐसे में जो सहयोग दें वही सच्चा मित्र होता है और जो नजरअंदाज करके तमाशबीन बना रहे वह विश्वास के लायक नहीं होते।
- कृतज्ञता गुण है, तो कृतघ्नता अवगुण -दूसरों के उपकारो को भुला देना एक भारी दोष है, अथवा किसी उपकार के बदले उसका आभार भी न प्रकट करना,यह जाहिल पन है। कृतघ्नता घास की तरह प्राकृतिक है जबकि कृतज्ञता गुलाब की तरह लौकिक।
- आत्मविश्वास उन्नति की सीढ़ी -आत्मविश्वास के बल पर मनुष्य प्रत्येक कठिनाई और प्रतिकूल परिस्थिति पर नियंत्रण रख सकता है। वही आत्महीनता भय, आत्मदया, द्वेष, ईर्ष्या जैसे मानसिक अवसादो द्वारा पतन का कारण बनता है।
- विचारों की आवृत्ति -मनुष्य के विचार उसके व्यक्तित्व के पहचान होते हैं।सकारात्मक विचारों वाला व्यक्ति प्रसन्न चित्त रहता है। वही नकारात्मक विचारों वाला व्यक्ति चिंता ग्रस्त ही रहता है।
दिलचस्प
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योग – आत्म दर्शनतंत्र , मंत्र और यंत्र में अंतर
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