सत्व गुण , रजस् गुण और तमस् गुण में अंतर

सत्व गुण , रजस् गुण और तमस् गुण में अंतर

भगवत गीता में बहुत सुंदर वर्णन है कि किस प्रकार मन, कर्म, वचन द्वारा किया गया कार्य व्यक्तित्व के तीन गुणों को दर्शाता है। यह तीन गुण सत्व गुण ,रजोगुण और तमोगुण है।

सत्व गुण , रजस् गुण और तमस् गुण में अंतर

सतोगुण

सद्गुण का अर्थ है कि अच्छे और सरल कर्मों की ओर प्रवृत्त करनेवाला गुण। निस्वार्थ और अनासक्त भाव से किया जाने वाला कार्य सतोगुण कार्य होता है। सतयुग में अधिकांश इसी प्रवृत्ति के व्यक्ति थे इसी वजह से उसे सत् युग कहा जाता था। सत्व गुण वाले व्यक्ति उच्च आशय, आध्यात्मिक शक्ति, निष्ठा औं आस्था , परोपकार की भावना, उच्च संस्कार,आत्मबल व आत्मज्ञान, धैर्य-संतोष, सात्विक भोजन-सात्विक दिनचर्या और शांत चित्त आदि सकारात्मक गुणों से परिपूर्ण होते हैं। ऐसे व्यक्ति हमेशा आशावादी , प्रफुल्लित, संतुष्ट और आनंदित जीवन व्यतीत करते है। सत्व गुण-लैंप सफेद कांच की चिमनी में रहने से स्पष्ट प्रकाश देता है।राधा स्वामी

रजोगुण

जब व्यक्ति का सत् गुणों से पतन होता है तो वह द्वितीय श्रेणी यानि रजोगुण में आ जाता है। काम, क्रोध, लोभ, मोह सब नाथ नरक के पंथ। रजोगुण व्यक्ति तृष्णा, लालसा, अभिमान, यश की लालसा तथा आत्म केंद्रित विचार, आत्म कुंठा और दोषारोपण करने का स्वभाव यह सब व्यक्ति के संस्कारों में गिरावट लाता है मन, कर्म, वचन से उसे सामान्य मनुष्य बना देता है। ऐसे व्यक्ति यदि कोई शुभ कार्य भी करते हैं या परमार्थ (परोपकार )भी करते हैं तो उसके पीछे भी उनकी यश की लालसा या अन्य कोई अपेक्षा होती है इस वजह से ऐसे व्यक्ति निराशा और तनाव की स्थिति में रहते हैं भौतिक सुखों की प्राप्ति के लिए क्रियाशील रहते हैं और असंतुष्ट, अशांत, अति उत्साहित या निराश रहते हैं। रजोगुण-बहुरंगी कांच की चिमनी है जिससे प्रकाश धीमा और कम हो जाता है।राधा स्वामी

तमोगुण

अंधकार, निराशा, अकर्मण्यता, अज्ञानता, उदासीनता आदि नकारात्म भाव तमोगुण को दर्शाते हैं। कलयुग में तमोगुण प्रधान व्यक्तियों की संख्या अधिक है। ऐसे व्यक्ति जो लोभी ,क्रोधी, निर्लज्ज ,आलसी, अपराधिक मनोवृति, अहंकारी, कुंठित मानसिकता वाले,जीव हत्या करने वाले, मांसाहारी और कुकर्मी होते हैं, उन्हें तामसिक प्रवृत्ति का व्यक्ति कहा जाता है। ऐसे व्यक्ति प्रमाद, निंद्रा और आलस में ही लीन रहते हैं। तमस गुण वाले व्यक्ति के आचार, विचार और मनोभाव मलीन और निम्न स्तर के होते हैं। ऐसे व्यक्ति चाह कर भी किसी का भला नहीं कर पाते क्योंकि इनकी प्रवृत्ति क्रूर होती है। उदाहरण-एक गरीब मां ने बच्चे को कुएं से निकालने के लिए चंगेज खान से मदद मांगी। जिसकी सेना वहां जंगल से गुजर रही थी।चंगेज खान सहर्ष तैयार हो गया और बच्चे में भाला गाड़ कर उसे कुएं से बाहर निकाल दिया पर बच्चा तो भाले की वजह से मर गया। चंगेज खान को लगा कि वह कितना अच्छा है उसने एक महिला की मदद की इससे सिद्ध होता है की तामसिक प्रवृत्ति किस हद तक नकारात्मक होती है। तमोगुण मिट्टी का बर्तन है जिसके अंदर रहने पर लैंप एकदम व्यर्थ हो जाता है।राधा स्वामी

यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् ।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे-युगे ॥
भगवत गीता के ज्ञान के अनुसार जब-जब धरती पर अधर्म और तमोगुण प्रधान लोगों का वर्चस्व हो जाएगा तो धरती पर सतयुग और  सत् गुणों की पुनः स्थापना की जाएगी।
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