श्रेय मार्ग और प्रेय मार्ग में अंतर

श्रेय मार्ग और प्रेय मार्ग में अंतर

पाया था सो खोया हमने, क्या खोकर क्या पाया ?

रहे ना हम में राम हमारे, मिली ना हमको माया ।।

मैथिलीशरण गुप्त

जीवन एक सुंदर यात्रा है। इस मार्ग पर मोड़ भी आते हैं और दोराहे भी। इसी दोराहे पर हमारी निर्णय शक्ति प्रेय मार्ग (जीव) और श्रेय मार्ग (शिव) का चयन करती है। यह चयन हमें इहलोक और परलोक दोनों को सुधारने का मौका देता है।

दो बिंदुओं निश्चित हुए की सुरेखा 'निश्चित' तैयार होती है। जीव और शिव यह दो बिंदु कायम किए कि परमार्थ मार्ग तैयार हुआ। - विनोबा भावे

श्रेय मार्ग

मानव जीवन सर्वश्रेष्ठ जीवन की श्रेणी में आता है क्योंकि इसी योनि में ही आत्मा मुक्ति प्राप्ति में सक्षम है। इसके लिए यह आवश्यक है कि हमने कौन से मार्ग पर चलने का निर्णय लिया है। यदि मनुष्य श्रेष्ठ/शिव मार्ग पर चलता है तो वह अपने कर्तव्यों की पूर्ति करते हुए भी मोक्ष की प्राप्ति कर सकता है। श्रेय मार्ग हमें सन्यास लेने के लिए प्रेरित नहीं करता अपितु यह हमें मोह- माया के चक्कर में फंसे बिना एक सुखी और सफल जीवन के लिए प्रेरित करता है, जिसमें परोपकार , दया , संवेदना , बंधुत्व , प्रेम , सहयोग , स्नेह , संतोष , शांति जैसे सकारात्मक विचार हो वह व्यक्ति गृहस्थ जीवन में रहते हुए मुक्ति प्राप्त कर सकता है।

मुक्ति शून्यता में नहीं, अपितु पूर्णता में है।

रविंदर नाथ ठाकुर

मन की शांति ही सच्ची मुक्ति है और उसका मार्ग अनासक्ति है।

श्रेय मार्ग और प्रेय मार्ग में अंतर infographic

 प्रेय मार्ग

इस पथ पर भी प्रेम , स्नेह , विश्वास , बंधुत्व जैसे भावों का समावेश है पर ईर्ष्या , द्वेष , माया , अहंकार , क्रोध आदि दुर्गुणों ने इन सब पर अपनी छाया डाल रखी है। प्रेय मार्ग पर व्यक्तिगत और परिवारिक दायित्व का निर्वाह करते-करते व्यक्ति स्वार्थी हो जाता है। यही स्वार्थ और परमार्थ का अंतर इन दो मार्गो को अलग करता है। कबीर दास जी ने बहुत सुंदर दोहे में इसका अर्थ स्पष्ट किया हैं –

माया मरी न मन मरा, मर मर गये शरीर।

आषा तृष्णा ना मरी, कह गये दास कबीर।।

कबीर दास जी कहते हैं कि शरीर , मन , माया सब नष्ट हो जाता है परन्तु मन में उठने वाली आशा और तृष्णा कभी नष्ट नहीं होती। इसलिए संसार की मोह तृष्णा आदि में नहीं फंसना चाहिए क्योंकि यही मुक्ति में बाधक हैं।

सुंदरकांड में तुलसी जी द्वारा लिखित यह पंक्तियां भी जीव मार्ग की कुछ त्रुटियों का वर्णन करती है

काम क्रोध मद लोभ सब नाथ नरक के पंथ।

सब परिहरि रघुबीरहि भजहु भजहिं जेहि संत॥

भावार्थ – काम , क्रोध , मद और लोभ- ये सब नरक के रास्ते हैं, इन सबको छोड़कर श्री रामचंद्रजी को भजिए, जिन्हें संत (सत्पुरुष) भजते हैं।

प्रेय मार्ग में से यदि मैं (अहम) को हटा दें, तो वह ही श्रेय मार्ग बन जाता हैं।

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