नैतिकता तथा नीति निर्देशक में अंतर

आज के बदलते परिवेश में बच्चों में संस्कारों का अभाव है। अल्पायु से ही बौद्धिक शिक्षा का महत्व तथा नैतिक शिक्षा की उपेक्षा(negligence) ने मानव जीवन को पतन के कगार पर ला कर खड़ा कर दिया है। व्यक्ति  नैतिकता के आधार पर नहीं बल्कि नीति के आधार पर कार्य करने लगे हैं। चलो ,इसे भी हम शुभ संकेत ही मानते हैं। हालांकि , नैतिकता धर्म, संस्कृति पर आधारित है परंतु समय के साथ कुछ को बदलना बहुत जरूरी होता है। जो कभी नैतिक मूल्य कहलाते थे, आज कुरीतियां बन गए हैं। आइए नैतिकता तथा नीति का अंतर जाने –

नैतिकता तथा नीति निर्देशक अंतर infographic

नैतिक मूल्य – किसी भी समाज और परिवार का उन्नति का मूल नैतिक मूल्य है। नैतिक मूल्य (दया,क्षमा,सहनशीलता,त्याग,संतोष ,सहयोग,प्रेम आदि सकारात्मक भाव) की शिक्षा बालक अपने परिवार और समाज से ही ग्रहण करता है। यह व्यवहारिक शिक्षा होती है, जो एक व्यक्ति दूसरे से स्वत: ही सीख जाता है।

भारतीय समाज में नैतिक मूल्यों के पतन का प्रमुख कारण आक्रांताओ के हमले, भारतीय संस्कृति का पतन, भौतिकता वादी सोच, मनोरंजन के साधनों में नैतिकता का अभाव और प्रमुख कारण आधुनिक शिक्षा प्रणाली। हालांकि बालकों में नैतिकता को बढ़ाने के लिए पाठ्यक्रम में एक विषय के रूप में इसे स्थान दिया गया है, परंतु यह किताबी विषय नहीं एक व्यवहारिक ज्ञान है। जो व्यक्ति अनुभव के द्वारा ही सीखता है।

नीति निर्देशक – किसी भी देश के शासन व्यवस्था का मूल आधार नीति निर्देशक होते हैं। सर्वप्रथम नीति निर्देशको आयरलैंड(Ireland) के संविधान में लागू किया गया था।यह एक प्रकार के जनकल्याणकारी तत्व है। नीति निर्देश और नैतिकता आपस में मिलते जुलते हैं यह भी अपने दायित्व के निर्वाह के लिए मार्गदर्शन का काम करते हैं।

यह सामाजिक, आर्थिक, न्याययिक समानता और गरिमा के अधिकारों का वर्णन करते हैं। उदाहरण- समान कार्य के लिए समान वेतन, 14 वर्ष की आयु तक के बच्चों के लिए मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा, कमजोर वर्गों के लिए सहायता योजनाएं, समान सिविल कोड लागू , पर्यावरण की रक्षा आदि।

difference सामान्य जानकारी