भारतीय संस्कृति और पश्चिमी संस्कृति में अंतर

परिपूर्ण संस्कृति सादगी की ओर, आंशिक संस्कृति बनाव-चुनाव की ओर दौड़ती है। यही प्रमुख अंतर है भारतीय और पश्चिमी संस्कृति में।

संस्कृति – मनुष्य के आध्यात्मिक, मानसिक विकास को दर्शाने वाले तत्व जिनका संबंध संस्कारों से होता है संस्कृति कहलाते हैं। समाज के मानसिक व बौद्धिक विकास , धर्म , साहित्य और दर्शन संबंधित सनातन विचारधाराएं इस का ही रूप है। आंतरिक संस्कार , रीती- रिवाज संस्कृति को दर्शाते हैं। भारत विश्व की प्राचीन सभ्यता का संरक्षक है। जिस पर हमें नाज होना चाहिए।

भारतीय संस्कृति और पश्चिमी संस्कृति में अंतर

व्याख्या

प्राचीन और आधुनिक संस्कृति – भारतीय संस्कृति विश्व की प्राचीन सभ्यता की धरोहर है। सिंधु घाटी सभ्यता जिसके अवशेष लगभग 5000 ईसा पूर्व कालखंड के हैं। भारतीय उत्तर वैदिक संस्कृति का ही स्वरूप था। हड़प्पा सभ्यता के समकालीन पश्चिमी संस्कृतियां जैसे रोम ,यूनानी, मिश्र और बेबीलोनिया मूलतः समाप्त ही हो गई है। अब तो पश्चिमी संस्कृति का नया स्वरूप जो ईसाई धर्म,यहूदी धर्म,इस्लाम धर्म और औद्योगिक क्रांति के प्रचार प्रसार के बाद प्रारंभ हुआ है ,एक आधुनिक सभ्यता है।

अध्यात्मिक और यथार्थवादी संस्कृति – भारतीय संस्कृति का मूल आधार अध्यात्म और चिंतन है। भारतीय सभ्यता की साहित्यिक धरोहर रामायण, गीता, महाभारत ,वेद ,उपनिषद संस्कार और मानवीय मूल्यों को दर्शाते हैं। इनकी जड़ें भारतीय समाज में बहुत गहरी हैं। इसके विपरीत पश्चिमी सभ्यता भौतिकवाद ,यथार्थवाद और मौकापरस्त है। यहां के महाकाव्य इलियड और ओडिस्ये तथा आध्यात्मिक ग्रंथ भी कहीं ना कहीं यथार्थवाद को ही दर्शाते हैं। जहां भारतीय संस्कृति पूरे विश्व को परिवार समझती है वही पश्चिमी संस्कृति पूरे विश्व को बाजार समझती है 

 दृष्टिकोण का अंतर – प्राचीन सभ्यताओं की तरह भारतीय सभ्यता ने अपनी पहचान नहीं खोई इसका प्रमुख कारण  इसका सहिष्णु, उदार और लचीला होना है। यह संस्कृति अनेकता में भी एकता दर्शाती है। इसी कारण यह सर्व धर्म समाहित करने की योग्यता रखती है और नवीनता को सहज ही स्वीकार और ग्रहण कर एक अलग भारतीय पहचान बनाती है। शिक्षा में प्रचार प्रसार की कमी के कारण  वैज्ञानिक दृष्टिकोण की कमी है। वहीं पश्चिमी सभ्यता धर्म परिवर्तन में विश्वास रखने वाले होते हैं।आक्रमक , असंतोषी और लालची होते हैं। नवीन सभ्यता होने के कारण यह सरलता से ही आधुनिक विचारों को अपना लेते हैं। परंतु नैतिक गुणों का अभाव समाज का एक बड़ा दर्द है।

महिलाओं के प्रति दृष्टिकोण – प्राचीन भारतीय सभ्यता में महिलाओं को पूर्ण स्वतंत्रता थी, परंतु आक्रांताओ के हमले और उनके द्वारा महिलाओं का शोषण ने लोगों के दृष्टिकोण में परिवर्तन कर दिए। भारतीय महिलाओं को वह स्वतंत्रता व अधिकार प्राप्त नहीं है जो पश्चिमी सभ्यता में महिलाओं को दिए गए हैं। पश्चिमी सभ्यता में महिलाओं की स्थिति काफी सुदृढ़ है। शिक्षा में प्रचार प्रसार अब भारतीय दृष्टिकोण में भी महिलाओं की स्थिति में परिवर्तन लाने में सहायक  होगा।

युग युग से संचित संस्कार, ऋषि मुनियों के उच्च विचार।
धीरो वीरो के व्यवहार,है निज संस्कृति के श्रृंगार।।

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