कर्म और कर्तव्य पर आधारित महापुरुषों के दिव्य वचन-
कर्म
- प्राणी अकेला जन्मता है, अकेला मरता है और अपने पाप पुण्य (कर्म) का फल अकेला ही अनुभव करता है।- श्री कृष्ण।
- कर्म माने प्रत्यक्ष सेवा ,भक्ति माने सेवा भाव -विनोबा भावे
- जिसे हम कर्म से पाते हैं उसे निष्कर्म से खोया जा सकता है।- आचार्य रजनीश
- अहम की भयंकरता पड़ने से कर्म में पाप की अनुभूति हो जाती है। -अज्ञात
- विहित स्वधर्म कर्म जो जासू। उचित पार्थ! सन्यास न तासू।। -द्वारका प्रसाद मिश्र।
- जीवन में कर्म को रोकना असंभव है।
- हर अच्छा कार्य पहले असंभव दिखता है।
- मनुष्य की जीवनियों में निस्वार्थ और शुभ कार्य सबसे प्रकाशित पृष्ठ है।-ढेकर थामस
- कहने की प्रकृति छोड़ो, करने का अभ्यास करो।
- बड़े कार्य छोटे कार्यों से आरंभ करने चाहिए। -शेक्सपियर
- शुभ कर्मों के द्वार कभी बंद नहीं होते। -शिवसागर मिश्र
- कर्म के बंधन तत्व दो हैं – कृतत्व का अभिमान और कर्म फल का लोभ। -ज्ञानेश्वरी
- मेरे दाहिने हाथ में कर्म है, बाए हाथ में जय है। -अथर्ववेद
- आप काज महाकाज। -पुरानी कहावत।
- करम गति टारे नहीं टरी। -मीराबाई
- कर्मपाश स्वयं नहीं कट जाता ,काटोगे तब कटेगा। -श्रीनाथ।
- कर्म योगी-सफेद दूध की काली गाय। सन्यासी- सफेद दूध की सफेद गाय। -विनोबा भावे
- जीवन में रंग और आत्मा का वास्तविक आनंद-कर्मशीलता में है। -अज्ञात
- स्वे कर्मण्यभिरतः संसिद्धिं लभते नरः।(अपने उचित कर्म में लगे रहने से ही मानव को सिद्धि प्राप्त होती है।) -भगवत गीता।
- सदा अपने काम से काम रखें , व्यर्थ विवाद में न पड़े। -संत काशीराम।
कर्तव्य
- वह मनुष्य किस काम का जो अपने आध्यात्मिक और भौतिक दोनों कर्तव्यों का समन्वय ना कर सके। -वृंदावन लाल वर्मा।
- तेरी बुद्धि और हृदय को जो सच मालूम हो वही तेरा कर्तव्य होना चाहिए। -महात्मा गांधी।
- जिसे अपना कर्तव्य नहीं सूझता वह अंधा है ।-अज्ञात
- एक कर्तव्य पूर्ण करने का पुरस्कार, दूसरे को कर सकने की क्षमता प्राप्त कर लेना है। -अज्ञात
- मनुष्य का प्राथमिक कर्तव्य है, शिष्ट होना। -देवी प्रसाद धवन
- गुलामी को कर्तव्य समझ लेना कितना आसान है। -स्वामी विवेकानंद
- जो आत्मरत हो ,आत्म तृप्त हो और आत्म संतुष्ट हो उसे कोई कर्तव्य नहीं है। -भगवत गीता।
- व्रतेषु जागृहि। अपने कर्तव्यों के प्रति सदा जागृत रहो। -ऋग्वेद
- कर्तव्य का पालन ही चित् की शांति का मूल मंत्र है। -प्रेमचंद्र
- उत्तम शुद्ध बुद्धि से हम कर्तव्य का पालन करें। -ऋग्वेद
- शत्रु कौन है? अकर्मण्यता। -शंकराचार्य