भय(FEAR) बिन होय न प्रीत (lOVE)

भय(FEAR) बिन होय न प्रीत (lOVE)

तुलसीदास जी द्वारा रचित रामचरितमानस की यह पंक्तियां जैसे हर काल, देश, व्यक्ति और समाज में मान्य है। भय का एक निश्चित रूप नहीं होता इसके अनेक रूप हैं-

    1. दंड का भय-यदि यह भय न हो तो व्यक्ति कानून ,संस्था के नियम नहीं मानेगा ।अतः वह उनके प्रति वफादारी,प्रेम प्रकट नहीं करेगा।
    2. अपमान का भय– यदि गलत नीतियों के कारण व्यक्ति को सामाजिक रूप से अपमान का भय न हो तो व्यक्ति  व्यभिचारी बन जाएगा।
    3. हानि का भय– यदि व्यक्ति को हानि का भय न हो, तो वह व्यक्ति लाभ का प्रयास नहीं करेगा।
    4. हार का भय-हार जीत सिक्के के दो पहलू हैं ,परंतु प्रतिस्पर्धा में यदि हार का भय न हो तो व्यक्ति जीतने का प्रयास नहीं करता।
  • मृत्यु का भय– मृत्यु निश्चित होती है ,परंतु मनुष्य को सुरक्षित रहने की प्रेरणा इसी भय से मिलती है। 

अभय दान पाने के लिए ऋषि, मुनि बहुत तपस्या करते थे तब जा कर उन्हें कहीं यह आशीर्वाद मिलता था ।अतः भय को ही अपनी प्रेरणा का स्रोत बना कर तरक्की करें, उन्नति करें। धन्यवाद।

सामान्य जानकारी