उपवेद , सूत्र ग्रंथ और ब्राह्मण ग्रंथ में अंतर

उपवेद , सूत्र ग्रंथ और ब्राह्मण ग्रंथ में अंतर

आर्य समाज की संपूर्ण बौद्धिक, धार्मिक, सामाजिक, आर्थिक व नैतिक जानकारी का स्रोत विश्व के सबसे प्राचीन ग्रंथ है, जिन्हें वेद कहा जाता है। इन वेदों के अतिरिक्त भी वैदिक साहित्य में बहुत सारे ग्रंथ है जैसे – ब्राह्मण ग्रंथ , उपनिषद , धर्मशास्त्र , आरण्यक , उपवेद, वेदांग आदि। संपूर्ण वैदिक साहित्य गंगा की घाटी में लगभग 1000 ईसा पूर्व से 600 ईसवी पूर्व के बीच में रचा गया , हालांकि इसके काल निर्धारण को लेकर विद्वानों में गहरा मतभेद है।

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उपवेद

वैदिक साहित्य का सबसे महत्वपूर्ण और बड़ा अंग वेद है। इनकी संख्या चार है- ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद। प्रत्येक वेद  की एक शाखा है जिसे उपवेद कहा जाता है।

  1. आयुर्वेद( चिकित्सा) – यह ऋग्वेद की शाखा है। इसमें प्रमुख ग्रंथ चरक व सुश्रुत है।
  2. धनुर्वेद (सैनिक विज्ञान) – यह यजुर्वेद का उपवेद है। यह  प्राय लुप्त हो चुका है, महर्षि दयानंद सरस्वती को इसके कुछ पन्ने प्राप्त हुए थे।
  3. गांधर्व वेद (संगीत विद्या) – यह सोमवेद का उपवेद है। इसमें संगीत, राग रागिनी ,स्वर ,ताल आदि का वर्णन है। यह ग्रंथ प्राप्त नहीं है।
  4. अथर्ववेद (कला व राजनीति) – यह अथर्ववेद का ही उपवेद है। इसमें अर्थ नीति, राजनीति , समाजशास्त्र , कृषि वाणिज्य आदि तत्वों  की व्याख्या है।यह ग्रंथ भी लुप्त प्राय है। इसमें कौटिल्य शास्त्र एवं शुक्रनीति उपलब्ध है।

सूत्र ग्रंथ

सूत्र ग्रंथ वैदिक साहित्य का अंतिम रूप है। इसमें वैदिक नीतियों के सिद्धांतों का संक्षिप्त रूप से वर्णन किया हुआ है। सूत्रों में वाक्य छोटे वह सरल है। परंतु उनमें उच्च विचार व भाव का समावेश है। इस साहित्य के चार भाग हैं –

  1. स्रोत सूत्र – इसमें वैदिक यज्ञ संबंधी कर्मकांड का उल्लेख है।
  2. गृह्म सूत्र – इसमें गृहस्थ के दैनिक यज्ञ,  नियम आदि का उल्लेख है।
  3. धर्मसूत्र – इसमें सामाजिक नियमों का उल्लेख है।
  4. शल्व सूत्र – इसमें यज्ञ विधियों के निर्माण का वर्णन है।

ब्राह्मण ग्रंथ

वैदिक साहित्य  जटिलता के कारण आम आदमियों की पहुंच से दूर होता जा रहा था। अतः वेदों को सरल व स्पष्ट भाषा में व्याख्या हेतु विद्वान ब्राह्मणों ने इसे गद्य रूप में लिखा। अतः इन्हें ब्राह्मण ग्रंथ कहा जाता है। ब्राह्मण ग्रंथ वेद मंत्रों के अर्थ और सार की टीकाएं है। प्रत्येक वेद के अपने एक या अनेक ब्राह्मण ग्रंथ है।यह ग्रंथ वैदिक संस्कृत में लिखे गए हैं। इन ग्रंथों से हमें तत्कालीन इतिहास के बारे में भी जानकारी प्राप्त होती है ।ऐतरेय ब्राह्मण ग्रंथ में राजाओ व उनके पदाधिकारियों का विस्तृत वर्णन किया गया है। ब्राह्मण ग्रंथ कुरु , पांचाल तथा आर्य संस्कृति पर भी बहुमूल्य प्रकाश डालते हैं। शकुंतला और भरत का उल्लेख भी इन ग्रंथों में मिलता है। प्रत्येक ब्राह्मण ग्रंथ के अंत में उपनिषद् भी हैं।

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