मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है।समाज में सहयोग की भावना का होना अनिवार्य शर्त होती है। दिन-प्रतिदिन के कार्यों , समस्याओं , समाधान, निर्णयों में मित्रों ,परिजनों कभी-कभी अपरिचित भी सहायता कर देते हैं। इसी प्रकार हम भी दूसरों की मदद करते हैं।ऐसे में मुस्कान के साथ एक औपचारिक शब्द- धन्यवाद काफी प्रचलित है।
यदि विकट परिस्थितियों, समस्याओं , समाधान और निर्णयों में कोई हमारा साथ , उम्मीद , सहयोग ,प्रेरणा दे तो वह धन्यवाद नहीं , आभार प्रकट करने योग्य होता है। उसका सहयोग जीवनदायिनी दवा के समान होता है । ऐसे में भाषा की परिभाषाएं खत्म हो जाती हैं और सिर्फ भावनाएं रह जाती हैं , जिसे आभार कहा जाता है।
आभार और धन्यवाद शिष्टाचार संबंधित गुण है। मानव जीवन आपसी सामंजस्य, सहयोग, उपकार पर आधारित है। जन्म से मृत्यु तक के चक्र में मानव संसारी कर्मों में सहयोग और तालमेल की नींव पर ही जीवन के सुख-दुख की नैया को खेता है। ऐसे में यदि आभार और धन्यवाद जैसे शिष्टाचारी गुणों का पतन हो जाए तो जीवन नैया भंवर में फंस जाएगी।