जाफरान की होली

जाफरान की होली

बसतं ने ली विदाई, फागुन ने ली अगंड़ाई
होली आई , होली आई
बच्चे , बड़े , बुर्जगो , औरतो के लिए खुशियों के रंग लाई
गुझियाँ , पुआ , मालपुआ की खशुबू हवा सगं मेरे घर भी आई
होली आई , होली आई
एक दूजे के गले मिले, लगाए एक दूजे को गुलाल
इस पावन पर्व पर उडे गुलाल, रंगो में लतपथ लोग लगे बेमिसाल
धर्म, जाति , पथं इन सब आडंबरो से हटके
सारे नाचे , झूमे, गाए और लगाए ठुमके
होली आई , होली आई
देवर भी भाभी के सगं करता आँख मिचौली
साली भी जीजा संग करती ठिठोली
गलियो में आते जातों पर फेंके गुब्बारे बच्चो की टोली
कुछ कहने पर मुस्कुरा के कहे ” बुरा ना मानो होली “
होली आई , होली आई
इस पर्व के हर्षोल्लास में
तुम उतनी ही लेना अपने गिलास में
जितनी के बाद तुम्हारे घरवालों को जाना ना पड़े तुम्हारी तालाश में

व्यंग्यात्मक कविता

जाफरान

मनोरंजक