हीनयान , महायान और वज्रयान में अंतर

हीनयान , महायान और वज्रयान में अंतर

महात्मा बुद्ध की मृत्यु के पश्चात उनके उपदेशों को संकलित करने, बौद्ध धर्म का प्रचार- प्रसार एवं सुधार के लिए समय-समय पर सभाओं का आयोजन किया गया। इन महासभा में उठे मतभेदों के कारण चतुर्थ महासभा तक बौद्ध धर्म  हीनयान और महायान दो संप्रदायों में विभक्त हो गया। यह महासभा 120 ईसा-पूर्व सम्राट कनिष्क के शासन काल में कश्मीर में बुलाई गई थी।

हीनयान, महायान और वज्रयान अंतर infographic

तांत्रिक बौद्ध धर्म –वज्रयान

आठवीं शताब्दी में बिहार और बंगाल में एक नए प्रकार का बौद्ध धर्म ,वज्रयान अस्तित्व में आया। यह महात्मा बुद्ध द्वारा दिखाए गए दर्शन और धर्म से बिल्कुल भिन्न, महायान सिद्धांत का एक भ्रष्ट रूप था। इसके अनुयायी कई प्रकार की गोपनीय क्रियाएं करते थे। जिनमें स्त्रियां और मदिरा आवश्यक वस्तुएं थी। यह दावा करते थे कि उनमें मानसिक शक्तियां है। यह संप्रदाय देवियों को बहुत महत्व देता था। उन्हें महात्मा बुध की रानियों के रूप में प्रस्तुत किया जाता था। इन देवियों को तारा कहा जाता था। इस संप्रदाय के अनुयायियों का यह विश्वास था कि इन देवियों की पूजा करने, सही मंत्रोच्चारण करने से बुद्ध को पाना संभव है।

इस संप्रदाय की एक विहार का निर्माण विक्रमशिला में किया गया। तांत्रिक बौद्ध धर्म,  मुसलमानों के भारत पर आक्रमणों से पहले पंजाब, कश्मीर, सिंध और अफगानिस्तान में फला -फूला। इस संप्रदाय ने धर्म के प्रचार के लिए प्रचारकों  को तिब्बत भी भेजा।

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