तुलसीदास जी द्वारा रचित रामचरितमानस की यह पंक्तियां जैसे हर काल, देश, व्यक्ति और समाज में मान्य है। भय का एक निश्चित रूप नहीं होता इसके अनेक रूप हैं-
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- दंड का भय-यदि यह भय न हो तो व्यक्ति कानून ,संस्था के नियम नहीं मानेगा ।अतः वह उनके प्रति वफादारी,प्रेम प्रकट नहीं करेगा।
- अपमान का भय– यदि गलत नीतियों के कारण व्यक्ति को सामाजिक रूप से अपमान का भय न हो तो व्यक्ति व्यभिचारी बन जाएगा।
- हानि का भय– यदि व्यक्ति को हानि का भय न हो, तो वह व्यक्ति लाभ का प्रयास नहीं करेगा।
- हार का भय-हार जीत सिक्के के दो पहलू हैं ,परंतु प्रतिस्पर्धा में यदि हार का भय न हो तो व्यक्ति जीतने का प्रयास नहीं करता।
- मृत्यु का भय– मृत्यु निश्चित होती है ,परंतु मनुष्य को सुरक्षित रहने की प्रेरणा इसी भय से मिलती है।