जय और विजय में अंतर

हमको मन की शक्ति देना, मन विजय करें। दूसरों की जय से पहले, खुद को जय करें।प्रार्थना । जय और विजय एक दूसरे के पूरक है। जहां विजय है, वहां जय-जयकार होगा ही।

जय – जय एक संयुक्त प्रयास, प्रशंसा, प्रसन्नता और प्रेरणा को दर्शाता है। जैसे – माता शेरावाली तेरी सदा ही जय। इसके भाव में किसी की हार जीत का कोई स्थान नहीं होता। इस शब्द का प्रयोग अपने पक्ष, समुह, समुदाय या देश के लोगों को प्रोत्साहित करने के लिए किया जाता है।
जैसे – क्रिकेट मैच में भारत माता की जय के नारे लगाए जाते हैं। त्योहारों पर देवी देवताओं की जय जयकार होती है। राष्ट्रीय त्योहारों पर शहीदों के लिए जय शब्द का प्रयोग किया जाता है। मानसिक तनाव को दूर करने तथा आत्म शक्ति बढ़ाने के लिए भी ऐसे प्रोत्साहित शब्दों का प्रयोग किया जाता है। जैसे – जय हो।

विजय – विजय शब्द  स्पर्धा में सफलता को दर्शाता है। अतः इसमें प्रतिद्वंदी का होना और उससे जीतना भी जरूरी है तभी आप विजयी कहलाओगे। तन ,मन ,धन से अपने प्रतिद्वंदी को परास्त कर, उस पर अधिपत्य स्थापित करना विजय को दर्शाता है।
साम ,दाम ,दंड, भेद सभी नीति विजय प्राप्ति के लिए मान्य है।विजय हमेशा शत्रुओं पर प्राप्त की जाती है। वह शत्रु बाहरी भी हो सकते हैं, आंतरिक भी हो सकते हैं। अंततः शत्रु किसी भी प्रकार का हो विजय हासिल करना ही पुरुषार्थ है। विजय उसी को प्राप्त होती है जो विजयी होने का साहस करता है। निंदा किए जाने पर भी प्रति निंदा नहीं करना , उससे दुहरी विजय प्राप्त होती है।
difference सामान्य जानकारी