रहिमन निज मन की, बिथा, मन ही राखो गोय।
सुनि अठिलैह लोग सब, बाटि न लैहैं न कोय।।
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है, इस नजरिए से समाज में सुख-दुख जैसे भावों को व्यक्त करना एक आम सी आदत होनी चाहिए परंतु ऐसा नहीं है। ऐसी क्या बात है , जिसका बहुत डर है। रहीम जी जैसे संत भी कह रहे हैं कि अपने मन की व्यथा/दुख को अपने मन में ही रखें अन्यथा लोग उसका समाधान कम बताएंगे और उपहास ज्यादा उड़ाएंगे। तो मनुष्य का डर यह उपहास है, जो उसकी दुखती रग को दबाता है । कटाक्ष, ताने और व्यंग्य के रूप में ही लोग अन्य व्यक्तियों के भावों का अपमान करते हैं या उसे अपमानित करने की कोशिश करते है।आइए जानते हैं कि कटाक्ष, ताना, व्यंग्य में क्या अंतर है।
कटाक्ष-किसी को चुभने या मन को लगने वाली बात को व्यंग्य के रूप में कहना, जिसके कारण व्यक्ति उस परिवेश में स्वयं को लज्जित महसूस करें। ऐसे वाक्यों को कटाक्ष या चुटकी कहां जाता है। इस प्रकार के शब्दों का प्रयोग किसी तुलना या ईर्ष्या में ही अधिकतर प्रयोग किए जाते हैं। कटाक्ष वाक्यों का प्रयोग करने वाला व्यक्ति स्वयं ही कहीं ना कहीं दुराभाव का शिकार होता है। कटाक्ष करने वाला व्यक्ति स्वयं को संपूर्ण समझते हुए दूसरे की किसी भी कमी या कोई कमी ना होने पर भी अपने आप को रोक नहीं पाता यह आदत एक बीमारी की तरह कुछ लोगों में समाहित होती है।
ताना-अवसर के अनुरूप और किसी पुरानी बात या आदत पर किसी के लिए अपमान सूचक शब्दों का प्रयोग करना ताना कहलाता है। ताना मन की गहराइयों तक वार करता है।यह एक शब्द या एक वाक्य भी हो सकता है। ताना व्यंग्य का कोई रूप नहीं है ।यह गंभीर मुद्रा में भी कहा जा सकता है। ताना देने वाले का उद्देश्य तुम्हारी कमजोरियों को बार-बार याद दिलाकर तुम्हें मानसिक प्रताड़ना देना और तुम्हारे आत्मविश्वास को कमजोर करने का होता है।
व्यंग्य-कटाक्ष और ताने को हंसी मजाक के रूप में प्रस्तुत करने को व्यंग्य कहा जाता है। व्यंग्य में वह सारी बातें जो मनुष्य के मन को ठेस पहुंचाए हंसी-मजाक या हल्के अंदाज में कह दी जाती है । यह थोड़ा द्वेष पूर्ण उपहास, हंसी ठठ्ठा का रूप होता है। अपमानित करने की सभी बातें इसमें कह दी जाती है परंतु इस प्रकार के वाक्य मन में असंतोष या लज्जित होने वाले भाव उत्पन्न नहीं करते। व्यक्ति इन्हें हल्के में ही लेता है और सामाजिक रिश्ते भी बने रहते हैं।
निष्कर्ष – कटाक्ष ,ताना ,बोली, व्यंग्य, फबती ,छींटाकशी , उपहास, हंसी ठठ्ठा, दिल्लगी, ठटोली, मजाक और चुटकी। इन भावों से भरे हुए वाक्य हमारे मन मस्तिष्क पर गहरा असर डालते हैं पर ऐसे वाक्यों को सकारात्मक और नकारात्मक रुप से लेना हमारा निर्णय होता है। हमें यह कभी नहीं भूलना चाहिए कि फल देने वाले वृक्ष पर ही लोग पत्थर फेंकते हैं। अंत में यही कहना चाहती हूं सबसे बड़ा रोग क्या कहेंगे लोग या कुत्तों के भौंकने से हाथी अपनी चाल नहीं बदलता।