आलस्य जीवित मानव की कब्र है, जिसमें सब अच्छे गुण दफन हो जाते हैं । – कूपर
आलस्य सबसे अधिक विघ्न कारक है। आलस्य से देह और मन दोनों ही कमजोर होते हैं।
- जहां कोई आशा नहीं है, वहां कोई प्रयास नहीं हो सकता – निराशा, आत्म हीनता, असंतोष, अविश्वास, भय जैसे नकारात्मक भाव के कारण भी व्यक्ति कुछ करने में असमर्थ हो जाता है।उसे यह पता नहीं चलता कि वह कार्य रुचि लेकर क्यों नहीं कर रहा। इसका कारण आलस्य ही समझा जाता है परंतु ये मन की स्थिति होती है। जिसका निवारण सकारात्मक भाव अर्थात आशा, विश्वास, आस्था, आत्मविश्वास, हिम्मत-जोश जैसे सकारात्मक विचारों के द्वारा संभव है। सकारात्मक विचारों के लिए प्रतिदिन एक कल्याणकारी कार्य करना जरूरी है।
- जल्दी सोए जल्दी जागे दुनिया में वह सबसे आगे – बचपन में आपने उक्त पंक्तियां कई बार सुनी होगी। इसी तरह के सकारात्मक विचारों के साथ सुबह जल्दी का अलार्म घड़ी में भरे और कोई शुभ ध्यये निश्चित करके उठे । दिन मत गिनो, दिन को अर्थपूर्ण बनाओ।
- जीवन चर्या में शारीरिक गतिविधि और मनोरंजन अनिवार्य है – आपको जानकर हैरानी होगी कि भय और अधूरी इच्छाएं ही समस्त दुखों का मूल है। अतः कोई न कोई सकारात्मक शौक/हॉबीज जरूर बनाएं तथा उन्हें पूरा करने का हर संभव प्रयत्न करें।आप किसी प्रिय पशु को भी पालकर उसका ध्यान रखकर अपने जीवन में गतिशीलता ला सकते हो।
- भोजन शैली – भोजन का हमारे जीवन पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ता है। जैसा अन्न वैसा मन और तन।शाकाहारी पौष्टिक आहार ,समय अनुसार लेकर और तरल पदार्थों की मात्रा अधिक करके हम अपने शरीर को चुस्त और तंदुरुस्त रख सकते हैं। जंक फूड, अधिक घी और तेल युक्त भोजन, मांसाहार शरीर की मांसपेशियों में ऐठन उत्पन्न करता है और आलस का एक कारण बनता है।
- शारीरिक रोग – थायराइड, ब्लड प्रेशर, शुगर, अर्थराइटिस, एनेमिक और भी कोई अन्य कारणों के कारण व्यक्ति की कार्य क्षमता प्रभावित हो जाती है।उसे आलस का नाम नहीं दे सकते। इसकी जांच करा कर उपयुक्त उपचार लेने पर व्यक्ति स्वस्थ महसूस करेगा और कार्य में भी रुचि लेगा।
- सामाजिक व सांस्कृतिक गतिविधियों में भाग लो – सामाजिक दबाव के कारण भी व्यक्ति अपने निराशा के भाव को त्याग कर क्रियाशील हो जाते हैं।अतः मित्रों, संबंधियों के साथ समय व्यतीत करें उनके साथ सैर या मनोरंजन योजनाएं बनाएं ताकि आप एकाकीपन महसूस ना करें और एक दूसरे की प्रेरणा स्रोत बन कर प्रगति करें।