आनुवंशिकीय रोग(Genetic disease)

विवाह से पूर्व संतति के स्वास्थ्य के लिए परिवारों की आनुवंशिकी का अध्ययन करना हितकर है।इस प्रकार का परिवार अध्ययन सन्तती को घातक बीमारियों से बचा सकता है। रिश्तेदारों में विवाह संबंध खतरनाक अनुवांशिक बीमारियों को बढ़ावा देती है क्योंकि इससे अप्रभावी जीन प्रबल हो उठता है और अपना अनिष्टकारी गुण प्रकट करता है। स्वस्थ संतान की प्राप्ति के लिए यह जरूरी है कि दूल्हा और दुल्हन निकट संबंधी न हो। आइए जाने ऐसे ही कुछ अनुवांशिक रोगों के विषय में-

नोंट-क्रम संख्या 1 से 14 तक की बीमारियों का मूल कारण परिवार/रिश्तेदारों में वैवाहिक संबंध है।

हेमोफीलिया/Haemophilia

हेमोफीलिया/Haemophilia यह एक अनुवांशिक रोग है।जिसमें चोट आने पर रक्त बहना बंद नहीं होता और कभी-कभी तो इस रोग से ग्रस्त रोगी की रक्त की कमी को धिराधान blood transfusion से पूरा किया जाता है।महारानी विक्टोरिया के खानदान में हेमोफीलिया में किसी को नहीं छोड़ा उसकी संतान में केवल एक ही व्यक्ति ही वंश का विकास कर पाया।
2 वणॊंधता/Colorblindness – रंग पहचानने में असमर्थता का कारण यह अनुवांशिक रोग होता है।कभी-कभी इस रोग के अन्य कारण भी हो सकते हैं।इसमें एक रंग या अधिक रंगो को पहचानने में दिक्कत आती है।

ऐल्केपटनमेह/Alkaptonuria

3 ऐल्केपटनमेह/Alkaptonuria – इस रोग का कारण समोद्भव विवाह के परिणाम होते हैं।जिगर/liver में एक विशेष प्रकार का एंजाइम होता है, जो होमो जैन्टिक अम्ल पर क्रिया कर  उसका रूप बदल देता है। जिसके कारण उपास्थि/cartilage गहरे काले रंग की हो जाती है।कान,कलाई,कोनी बदरंग होने लगती है।स्त्रियों की अपेक्षा पुरुषों में इसकी बारंबारता दुगुनी है।

4 फेनिलकीटोनमेह/phenylketonuria – पीड़ित व्यक्तियों के बहन भाइयों में यह अनुवांशिक रोग पाया जाता है।जहां पति-पत्नी के पूर्वज एक ही होते हैं ऐसे विवाहों में यह रोग असाधारणतथा आधिक पाया जाता है।ऐसे रोगियों में से 60% जड़ बुद्धि होते हैं और 30% विमूढ़ शेष रोगियों में कुछ मानसिक क्षमता पाई जाती है।इसका कारण- रक्त का फेनिलपाइ रूविक अम्ल में परिवर्तित हो जाना और असाधारण मात्रा में पेशाब से निकलने लगता है।ऐसे रोगी बच्चे को बचाने के लिए फेनिललानीन  रहित पाउडर वाले दूध का प्रयोग किया जा सकता है।

टाइरोसिनमेह/Tyrosinosis – पेशाब में टायरोसिन निकलता रहता है जिसके कारण पेशाब बाहर आने पर काला पड़ जाता है क्योंकि पेशाब में होमोजैन्टिसिक अम्ल/homogentisic acid आता है और कभी उपास्थि/cartilage और जोड़ों में रंग द्रव pigment एकत्रित होने लगता है।

6 काचीय जड़ता/Amaurotic Idiocy – यह कई रूपों में घटित होता है।शैशवावस्था में जन्म के शीघ्र बाद ही काचीय जड़ता घेर लेती है।प्रथम माह से छठे माह के भीतर ही यह रोग हो जाता है।मानसिक रोग के साथ-साथ पक्षाघात व अन्धनता आ घेरती है और अट्ठारह माह के बाद शिशु चल बसता है।इसमें अधिकतम आयु तीन वर्ष की हो सकती है।

7 अग्न्याशय का तंतु  पित्ताशय/Fibrocystic Disease of the Pancreas – रोग में दस्त की बीमारी व छाती में संक्रमण व पसीने में सोडियम क्लोराइड का आना मुख्य लक्षण है।भोज्य पदार्थ अपच रह जाते हैं।फेफड़ों में संक्रमण हो जाता है और निमोनिया की संभावना बन जाती है।पहले यह रोग प्राणघातक सिद्ध होता था परंतु अब एंटीबायोटिक औषधियों से काफी राहत मिलती है।

8 एकण्डो्प्लासिया/Achondroplasia – यह प्रभावी जीन का परिणाम है। हड्डियों में उपास्थि भागों में विकास की असमर्थता ही इसका कारण है।टांगे व बाजू छोटे रह जाते हैं और सर व धड़ बड़ा दिखाई देता है।इसमें साल भर में में ही मृत्यु हो जाती है।

गाउट/Gout


9 गाउट/Gout – शरीर का प्यूराइन मेट्रोवोलिज्म ठीक प्रकार काम नहीं करता है।जोड़ों के आसपास ऊतको में यूरिक अम्ल तथा सोडियम लवण के क्रिस्टल जमा होने लगते हैं और प्रौढ़ावस्था में संधि-शोथ में दौरे पड़ते हैं।पुरुषों की अपेक्षा स्त्रियों को यूरेट स्तर कम होता है।स्त्रियों में जीन वंशागत होते हुए भी यह रोग उनमें प्रकट नहीं होता।

टाइलोसिस/Tylosis


10 टाइलोसिस/Tylosis – इस रोग में हाथों तथा पावों की हथेलियों की त्वजा मोटी हो जाती है और इन्हीं अंगों में पसीना आता है।वंशानुक्रम के प्रभावी जीन के कारण से यह रोग हो जाता है।प्रभावी रूप में यह रोग अवस्थाओं में होता है 3 से 12 माह के मध्य तथा 5 से 15 वर्षों के बीच होता है।बाद की अवस्था में यह काफी गंभीर रूप में होता है।

11. पांरफाइरिया/Porphyria – पांरफाइरिन नामक तत्व के न बनने से पांरफाइरिया हो जाता है।दांतों का रंग लाल,भूरा और सुग्राही त्वचा इसके लक्षण है।फफोले बन जाते हैं तथा घाव निशान छोड़ जाते हैं।वंशानुक्रमण में इसके कई रूप होते हैं।

12 मंगोलिज्म/Mongolism – यह रोग तंत्रिका तंत्र का गंभीर विकार होता है।शारीरिक और मानसिक रूप से मंदता तथा पिछड़ापन इसके लक्षण है।कई रोगियों में गुणसूत्रों की संख्या 47 होती है।मंगोल पुरुष संतान उत्पत्ति की क्षमता से वंचित रहता है।

पोलीडकटाइली/Polydactyly


13 पोलीडकटाइली/Polydactyly – कई ऐसे प्रभावी जीन है जिनके कारण हाथ-पैर की कुरचना होती है।असाधारण रूप से लंबी उंगलियां, छोटी उंगलियां, अंगूठे की ओर मुड़ी हुई उंगलियां ,आशिक या पूर्ण रूप से उंगलियों का अभाव, उंगलियों का नाटा व जालीदार होना, इसमें उंगलियों का प्रतिलिपिकरण होता है।प्रकटी करण में जीन विभिन्न होता है।

ईपीलोइया/Epiloia


14 ईपीलोइया/Epiloia – इस रोग में चेहरे की त्वचा पर पिटिकाय/Papules हो जाती है।उनका रंग लाल और पीला होता है। इससे संबंधित रोग है -गुर्दा, दिल व दिमाग का कैंसर।हालत गंभीर होती है और मिरगी तथा मानसिक रोग हो जाता है।शैशावस्था  में ही रोगी चल बसता है और जीवित रह जाने वाला व्यक्ति प्रजनन नहीं कर पाता।इसके गंभीर परिणामों के कारण ही जीन दो पढियों से आगे बहुत कम जाता है।

जन्मजात विकृतियां जन्म के समय दिखाई देने वाली विरूपताएं ही इसमें सम्मिलित है।जन्मजात विकृति अनुवांशिक कारणों का परिणाम हो सकती है, इसके अन्य कारण भी हो सकते हैं।अनुवांशिक तत्वो व अन्य कारणों की अंतः क्रिया के परिणाम स्वरूप भी यह विकृतियां होती हैं।विश्व में बच्चों के संपूर्ण रोगों में 1% वे रोग है जो त्रुटिपूर्ण जींस के कारण होते हैं।आइए जाने ऐसी कुछ बीमारियों के विषय में –

नोंट क्रम संख्या 15 से 18 तक की बीमारियों का मूल कारण जन्मजात विकृतियां है।

15 हंटिंगटन कोरिया/Huntington’s chorea – यह विकृति 35 वर्ष की आयु के आसपास प्रकट होती है।इसका अंत मृत्यु से ही होता है।जिन व्यक्तियों में यह जीन होता है, वे विकृति से पूर्व संतान उत्पन्न कर सकते हैं।इस रोग में अनियंत्रित व अक्रमिक मासल ऐंठन के कारण रोगी पीड़ित रहता है।
16  तालु विदरित/Palate Rupture Disease – तालु विदरित होना बच्चे में आनुवंशिक कारणों से होता है।इस रोग में न प्रभावी जीन और न ही अप्रभावी जीन कारण है परंतु यह वंशानुक्रम के विभिन्न तत्वों के परिणामों का बुरा फल है।
17 जन्मजात बधिरता/Congenital deafness – शिशु में जन्मजात बधिरता माता की गर्भावधि के खसरा आदि रोगों का परिणाम है।इस प्रकार के बच्चों में जन्मजात हृदय रोग भी होते हैं।

18 कोण्डोडायसटा्फी/Condrodystrophy – कोण्डोडायसटा्फी नामक बौने पन का रोग अनुवांशिक दोष के कारण होता है।इस रोग में बाहें तथा टांगे छोटे-छोटे और देह सामान्य होती है।यदि माता-पिता में से कोई भी इस रोग से पीड़ित हो तो बच्चों में भी यह रोग आ जाता है, परंतु सामान्य माता-पिता की जनन कोशिका  मे नया उत्परिवर्तन(जींस की रचना तथा कार्य में परिवर्तन) होने के कारण से भी बहुत बच्चे इस रोग से पीड़ित हो जाते हैं।

जीन तथा विकिरण – यूरेनियम तथा रेडियम के अस्थिर परमाणु सूक्ष्म परमाणुओं में परिवर्तित हो जाते हैं।यह असली परमाणु रेडियो एक्टिव होते हैं।अस्थिर नाभिकों मे से ही ऐल्फा तथा बीटा कणों के रूप में अथवा गामा विकिरण की तरंगों के रूप में ऊर्जा निकालती रहती है।गामा वितरण एक्स किरण X-ray के समान होता होता है।गामा किरणें जींस को नष्ट कर देती है।जीन्स एक अनुवांशिकता के गुणों का आधार तथा इकाई है।जीन्स ही आने वाली संतानों की विशेषताओं का सूचक होता है, विकिरण द्वारा जिसमें उत्परिवर्तन mutation होता है जिससे संतान में विकार पैदा हो जाता है।सारी नस्ल ही विकृत तथा अपाहिज हो जाती है। ताप नाभिकीय thermo nuclear बम के विस्फोट तथा हाइड्रोजन बम के विस्फोट।यूरेनियम खानों में काम करने वाले श्रमिक ,रेडियो तरंगों के संपर्क में रहने वाले व्यक्तियों पर विकिरण का क्या प्रभाव पड़ता है।उनकी संतान को कौन से अनुवांशिक रोग हो जाते हैं। आइए जाने-

यूरेनियम तथा रेडियम
  1. अस्थि कैंसर  – हाइड्रोजन बम के विस्फोट से स्ट्रोशियम-90 की कुल मात्रा में वृद्धि हो जाती है हड्डियां इसकी वाहनी होती है। अधिक मात्रा में हो जाने पर यह अस्थि कैंसर जैसी बीमारी उत्पन्न कर देती है।यह कुप्रभाव न केवल कायिक ही है बल्कि अनुवांशिक भी है।
  2. रेडियो एक्टिव पदार्थ – खाद्य तथा पेय पदार्थों व शारीरिक घावों द्वारा अंदर जाने वाले रेडियो एक्टिव पदार्थ हड्डियों तथा जोड़ों में कैंसर पैदा करते हैं।यह पदार्थ15 वर्ष के बाद कैंसर का विष फल देते हैं।
  3. फेफड़ों का कैंसर – यूरेनियम खानों में काम करने वाले श्रमिकों को फेफड़ों का कैंसर हो जाता है।खानों की हवा में पाया जाने वाला रेडान अधिकतम सीमा से 30 गुना होता है।जो अनुवांशिक असर भी डालता है।
  4. असमय बुढ़ापा – विकिरण से प्रभावित व्यक्तियों का आयु काल छोटा तथा असमय बुढ़ापा आ जाता है।विकिरण के प्रभाव से जीवन अवधि घट जाती है साथ ही साथ संतति की जीवन अवधि भी घट जाती है।
  5. न्युकेमिया आयनीकारक – विकिरण से न्यूकेनिया हो जाता है।रुधिर निर्माण करने वाले अंगों की कोशिकाओं में उत्परिवर्तन होने के कारण यह अवस्था पैदा हो जाती है।जितनी भी विकिरण की मात्रा अधिक होती है यह संख्या उतनी ही बढ़ती जाती है।

प्रत्येक परमाणु  परीक्षण से विश्व में विकिरण की मात्रा बढ़ती जा रही है और विकिरण की वृद्धि मानव जाति के लिए गंभीर खतरा है।इसका उदाहरण हिरोशिमा तथा नागासाकी के परमाणु के बाद बची हुई जनसंख्या व उनकी संतति स्पष्ट दर्शा रही है।

सामान्य जानकारी