अर्चना, आराधना ,उपासना और पूजा में अंतर

आध्यात्मिक अनुभूति के निमित्त साधारण अर्चना, आराधना ,उपासना और पूजा पाठ से प्रारंभ करके ईश्वर के प्रति प्रगाढ़ प्रेम में लीन होने वाली सफल एवं प्रगतिशील मानसिक चिंताओं को भक्ति कहते हैं।

अर्चना, आराधना ,उपासना और पूजा में अंतर

पूजा,अर्चना को जो लोग आडंबर कहते हैं उन्हें जानकर हैरानी होगी कि इनके मनोवैज्ञानिक और वैज्ञानिक कारण है।

  1. घर में सद्भाव – पूरा परिवार साथ बैठकर पूजा अर्चना करता है जिससे प्रेम स्नेह बढ़ता है और मानसिक तनाव दूर होता है।संस्कारों की नींव मजबूत होती है।
  2. उत्साह में वृद्धि – उपासना के समय भक्ति गीतों के द्वारा परिवार में जोश एवं कठिनाइयों का सामना करने की शक्ति बढ़ती है।व्यक्ति कभी भी निराशऔर हतोउत्साहित नहीं होता।
  3. सकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव – पूजा अर्चना के बहाने लोग सुबह स्नान करके तैयार हो जाते हैं और शांति व शक्ति के लिए प्रार्थना करते हैं जिससे घर में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है।एक निश्चित दिनचर्या बनने में सहयोग मिलता है।
  4. मानसिक शांति – पूजा अर्चना करने से मन में शांति, सहयोग, अच्छे कर्म करने की प्रेरणा मिलती है। अधिकतर आरती ,पाठ और धर्म ग्रंथ यही प्रेरणा दे रहे होते हैं।
  5. हवन,धूप और अगरबत्ती – हवन की लकड़ी ,धूप और अगरबत्ती अधिकतर आम या नीम की लकड़ी से बनती है, जो आसपास के हानिकारक सूक्ष्म जीवों को नष्ट करती है।जो हमारे स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होते हैं साथ ही घर का सुगंधित वातावरण अध्यात्मिक शक्ति को बढ़ाता है।
  6. घंटी और शंख बजाना – घंटी और शंख बजाने से आसपास सकारात्मक ऊर्जा और सूक्ष्म हानिकारक जीव नष्ट होते हैं। शंख बजाने से फेफड़ों में ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ती है।
  7. धैर्य और स्वीकार करना – अपरिवर्तनशील समस्या को कर्म फल मानकर स्वीकार करने की शक्ति मिलती है। धैर्य और स्वीकार्यता के गुण के कारण डिप्रेशन का रोग नहीं होता है
  8. समस्याओं का समाधान – उपासना और आराधना के द्वारा मन की अंतः शक्तियों को पहचान कर व्यक्ति अपनी समस्याओं का समाधान निकाल पाता है और आत्म प्रेरणा पाता है।
  9. शुभ कर्म की प्रेरणा – पूजा अर्चना में कर्मों के हिसाब से शुभ या अशुभ के फलों का ब्योरा होता है जो व्यक्ति को शुभ कर्म करने के लिए प्रेरित करता है।जिससे व्यक्ति का सामाजिक उत्थान होता है।
  10. आस्था और विश्वास की गहरी जड़े – आस्था और विश्वास व्यक्ति को कभी भी अकेला महसूस नहीं होने देती।यह आत्मशक्ति की तरह जीवन भर व्यक्ति का साथ निभाती है।सगुण और निर्गुण ब्रह्म का ध्यान करके व्यक्ति अपने विचारों पर अंकुश लगा सकता है।

सगुण भक्ति को साधना के लिए और निर्गुण भक्ति को लक्ष्य समझ ग्रहण करना चाहिए।-भगवान श्री सत्य साईं बाबा।

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