सुपात्र और कुपात्र में अंतर

सुपात्र और कुपात्र में अंतर

पात्रता

पात्रता अर्थात अपनी योग्यता , क्षमता , कुशलता , ग्रहण शीलता से स्वयं को सिद्ध कर विशेष स्थान प्राप्त करना तथा उस स्थान के लिए उचित पात्र(selected candidate) बनना। इसके अतिरिक्त भाग्य और वंशावली द्वारा भी पात्रता का निर्णय लिया जाता है।

व्यक्ति के सुपात्र और कुपात्र की जांच के अनेकों तरीके हैं। इसके उपरांत भी सही पात्र का चयन करना बहुत ही कठिन कार्य है। स्वयं देवता भी सुपात्र और कुपात्र में भेद नहीं कर पाते थे और अनेक समस्याओं में फंस जाते थे। हमारे पास अनेकों उदाहरण है जिसमें राक्षसों की तपस्या से प्रसन्न होकर देवताओं ने उन्हें ऐसे वरदान दे दिए जो स्वयं उनके लिए और मानव जाति के लिए विनाशकारी सिद्ध हुए। हालांकि वह अपनी मेहनत के बल पर उस वरदान के अधिकारी सिद्ध हुए परंतु उन्होंने उस वरदान का अनुचित उपयोग किया।

प्राचीन काल से अब तक यह समस्या का जस की तस बनी हुई है। आज भी सही पात्र/कैंडिडेट का चुनाव निष्पक्ष भाव से नहीं होता। जाति , धर्म , वर्ग , सामाजिक स्थिति ओर भी अनेक कारक पात्रता के चयन को प्रभावित करते हैं। आइए सुपात्र और कुपात्र में अंतर जाने-

सुपात्र और कुपात्र में अंतर infographic
सुपात्र और कुपात्र की जानकारी क्यों आवश्यक है।

दान देने का निर्णय -यदि आप दान कर रहे हैं तो सुपात्र को ही दान दे ताकि आपके द्वारा की गई मदद से वह अपना भविष्य उज्जवल करें और आपका आभारी भी रहे। इससे आपके सत्कर्मो  में वृद्धि होगी। यदि आप कुपात्र को धन का दान करेंगे वह उसे कुकर्मों पर खर्च करेगा और इससे आपके पाप कर्मों के साथ ही साथ भिखारी वर्ग में वृद्धि होगी। इसलिए यह आवश्यक है कि आप कर्मवीर इंसान को ही धन का दान करें।

संपत्ति का अधिकार -आपने सुना ही होगा “पूत सपूत तो क्यों धन संचय। पूत कपूत तो क्यों धन संचय।।” अर्थात यदि पुत्र योग्य , सक्षम है तो धन जोड़ने की कोई आवश्यकता नहीं है क्योंकि वह स्वयं ही धन अर्जित कर सकता है । यदि पुत्र कूपात्र /कपूत है तो भी धन संचय करने की कोई आवश्यकता नहीं क्योंकि वह उस धन को व्यर्थ ही गंवा देगा। इस संदर्भ में आपने राजा-महाराजाओं की बहुत सी कहानियां सुनी होगी और आज के राजनीतिक जीवन में परिवारवाद के ऐसे बहुत से उदाहरण है जहां कुपुत्र को गद्दी/कुर्सी देने के प्रयास किए जाते रहे हैं।

शिक्षा का अधिकार -शिक्षा का समान अधिकार “सर्व शिक्षा अभियान” बहुत ही आवश्यक और सराहनीय कदम है। 14 वर्ष तक मौलिक शिक्षा का अधिकार बहुत जरूरी है। एक शिक्षिका होने के नाते मैं यह जानती हूं की शिक्षा का स्तर बहुत गिर चुका है। जो बच्चे 16 साल की उम्र पार कर चुके हैं , उन्हें उनकी योग्यता के अनुसार तकनीकी शिक्षा देने की आवश्यकता है।

सभी बच्चों को आठवीं के उपरांत शिक्षा के लिए मजबूर ना किया जाए। कक्षा में बच्चे बंधे हुए बैठे रहते हैं और विषय में उन्हें रुचि नहीं होती। उन्हें अपना भविष्य भी अंधकार मय लगता रहता है। बच्चे कुछ नया नहीं सीख पाते अतः वह शिक्षकों का सम्मान भी नहीं करते। बच्चों को उनकी पात्रता और योग्यता अनुसार यदि व्यवसायिक शिक्षा(Vocational Education) दी जाए जिसमें उनकी रूचि हो तो रोजगार की समस्या का भी समाधान हो जाएगा। सभी बच्चे सुपात्र होते हैं बस उनकी रुचि , योग्यता , क्षमता को सही दिशा में मोड़ने की आवश्यकता होती है।

इसी प्रकार व्यवसाय , नौकरी , पदोउन्नति में यदि सुपात्र का चयन हो तो देश की उन्नति को कोई नहीं रोक सकता। साथ ही साथ जो भारत से बौद्धिक पलायन/brain drain हो रहा है उस पर भी अंकुश लगेगा। यदि योग्य/सुपात्र को सम्मान नहीं दिया जाएगा तो उसकी निराशा से फैले अंधकार को कोई भी नहीं संभाल पाएगा।

पोथी पढ़ी-पढ़ी जग मुआ पंडित भया ना कोयढाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय ।

भावार्थ – सुपात्र वह नहीं जो बहुत विद्यावान है अपितु वह है, जो सबसे प्रेम/ समभाव रखें।

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