लोक निंदा एक रोग

मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। समाज का गठन मानव के विकास ,सहयोग के लिए ही किया गया है। यदि समाज अपने मानसिकता, कुरीतियां, महिला ,वण॑, धर्म विरोधी नीतियों के चलते व्यक्ति में कुंठा ,निराशा, हताशा, तनाव और आत्म हीनता उत्पन्न करें तो उचित यह है हम लोक निंदा के भय को त्याग कर उन्नति ,स्मृति और नैतिकता का रास्ता अपनाएं
लोक निंदा एक रोग
सबसे बड़ा रोग,क्या कहेंगे लोग।

सबसे बड़ा रोग क्या कहेंगे लोग। सामाजिक डर के चक्कर में लोग अपना जीवन पूरी तरह बर्बाद कर देते हैं। सभी बीमारियों की जड़ यह रोग है। दिखावे में लोग अपनी व अपने परिवार  की भावनाओं की कदर करना भूल जाते हैं। याद रखें हमसे समाज हैं ,हम समाज से नहीं है।समाज की इकाई परिवार हैं।

कुछ तो लोग कहेंगे, लोगों का काम है कहना।
 
कुछ तो लोग कहेंगे लोगों का काम है कहना। वास्तव में यह लाइन हकीकत के करीब है। लोग तो कहते ही रहते हैं अपने आप को सुदृढ़ बनाकर लोगों की  बातों को नजर अंदाज करके आगे बढ़ना चाहिए।
 
यह पब्लिक है, यह सब जानती है।
 
यह पंक्तियां एक गाने की है। आपने सुना ही होगा, हालांकि यदि लोग सब कुछ जानते ही हैं तो फिर किस बात का डर है दिल और मन खोल कर जीवन जीना चाहिए। पब्लिक का काम है शोर मचाना और कर्मशील व्यक्ति का काम है उन्नति करना।
 
जिसने की शर्म उसके फूटे करम 
 
जिसने करी शर्म उसके फूटे कर्म। बहुत सारे कार्य तो यही सोच के नहीं किए जाते यह छोटा है, हमारे लायक नहीं है, लोग क्या कहेंगे। इस तरह की बातें सोच कर हम बहुत सारे अवसरों को खो देते हैं। अतः कर्म में शर्म नहीं।
 
फजूल की शर्म जरूरी शर्म को मार डालती है।
 
रविंद्र नाथ टैगोर जी ने सही कहा है। जिन कार्य को आगे बढ़कर करना चाहिए यदि उन्हीं कार्यों में व्यक्ति शर्म महसूस करें तो फिर उन्नति के सभी मार्ग उसके लिए स्वतः ही बंद हो जाएंगे। अतः फजूल की चिंता ना करें
 
शराफत रोग है ओर कुछ नहीं।
 
शराफत रोग है ओर कुछ भी नहीं इसका अभिप्राय यह बिल्कुल नहीं है कि हमें शराफत छोड़ देनी चाहिए जैसा आप जानते हो अति सर्वत्र वर्जित होता है। महिलाओं के लिए शराफत के नाम पर कई कुरीतियां सदियों से चली आ रही हैं , तो ऐसी शराफत और शर्म का क्या फायदा।
 
शर्म से लोग घर में घुसे, नंग कहे हम से डरे।
 
शराफत से लोग घर में घुसे पर नंग कहें हम से डरे सही समझे आप शरीफ लोग दुनियादारी की शर्म से कुछ नहीं बोलते परंतु बेशर्म और बुरे लोग यह समझते हैं कि वह हम से डर गए हैं अतः ऐसे लोगों के लिए तुम्हें झूठी शर्म  यानि  डर को छोड़कर उनका मुकाबला करना चाहिए।
 
सच्ची भलमनसाहत भय रहित होती है।
 
सच्ची भलमानस डर रहित होती है। यह कथन कटु सत्य है भलाई का काम शर्म या डर से नहीं , भाव से किया जाता है। लोक सेवा का कार्य मात्र दिखावा नहीं अपितु एक अध्यात्मिक कार्य की तरह किया जाना चाहिए।
 
शराफत ठाट बाट बढ़ाने में नहीं अपनी इज्जत बनाने में है।
 
शराफत ठाट बाट बढ़ाने में नहीं अपनी इज्जत बनाने में है सत्य वचन क्योंकि शराफत दिखाई नहीं जाती व्यवहार में लाई जाती है और जो शरीफ होगा समाज में अपना सम्मान प्राप्त कर ही लेगे। उसके लिए उसे कोई विशेष आयोजन करने की आवश्यकता नहीं हैं।
जल्दी सो कर उठने का यश जिसको प्राप्त है, वह दोपहर तक सो सकता है।
 
जल्दी सो कर उठने का यश जिसको प्राप्त है वह दोपहर तक सो सकता है यह पंक्तियां काफी हास्यात्मक लगती है परंतु यह सत्य है यदि आप एक बार अपनी एक अच्छी छवि बना चुके हो तो उसे टूटने में बहुत समय लगेगा अच्छी छवि वाले इंसान को लोग अच्छा ही समझते रहते हैं।
 
बुराई सुनने की आदत डालो क्योंकि तुम जीवित हो , तारीफ तो मरने के बाद होती हैं।

बुराई सुनने की आदत डालो क्योंकि तुम जिंदा हो यह पंक्तियां सबसे अच्छी है साधारण व्यक्ति के लिए छोटी-छोटी बातों पर कमियां निकाली व बताई जाती हैं इन चीजों को अन्यथा ना ले कर स्वीकार करने मैं ही भलाई है क्योंकि हम जीवित हैं और तारीफ तो मरे हुए लोगों की ही होती है।

संक्षिप्त विवरण

निंदा जैसे विषय का अंतिम सार यही है कि अपने जीवन को लोगों की सोच, विचार, दृष्टिकोण, मापदंड के तराजू में ना तोल कर जीना सीखें। तुम हर व्यक्ति को खुश नहीं कर सकते सिर्फ एक व्यक्ति को खुश रखोगे तो जीवन स्वर्ग बन जाएगा वह एक व्यक्ति तुम स्वयं हो। खुश रहोगे तो ही खुशी बांटोगे। 

सामान्य जानकारी