पुत्र कोरोना
प्रकृति के अनुग्रह को जब न मानव मान सका,
तब प्रकृति नेे तीक्ष्ण बाणों से भीष्म की तरह बांध दिया ,
आज धरा निकली है अपना स्वाभिमान पाने को ,
अपना बच्चा खाएगी, अपने बच्चे बचाने को ,
मनुष्य अब तू रोता है ,
जब अपनों की लाशों को ढोता है,
विकास का नहीं तू अहंकार का दाता है ,
आज बताऊंगी तुझको कि तूने कितने सिरो को काटा है,
हर बात का हिसाब लिया जाएगा ,
तुझको भी आज पिंजरो में बंद किया जाएगा,
मां की ममता को तूने खून के आंसू रुलाए हैं ,
अतःतुझ पर रोने वालों से भी तुझे मुक्त किया जाएगा,
मां का बदला है यह हथियारों से नहीं होगा ,
खुद तु अपनी कब्र खोदेगा और खुद ही उसमें सोएगा
हे कोरोना, मेरे पुत्र तुझको धन्यवाद है,
दुष्ट पुत्रों को तूने किया अब संहार है।
दुष्ट कोरोना
मैं मानव तुझ से हार गया,
ऐसा तू कैसे मान गया,
मेरा विज्ञान तुझे धो डालेगा,
दुष्ट कोरोना तु भागेगा,
मैंने एड्स-प्लेग भूगते हैं ,
मैंने विकिरण के कहर भूगते हैं,
मैंने धरती अंबर के प्रलय भूगते हैं ,
मैं जीत का निशान हूं, स्वयं अपनी पहचान हूं।
माना तू जीवन पर भारी है,
पर मेरी बारी अभी आनी है ,
मैं वृद्धि हूं, मैं शक्ति हूं, मैं ज्ञान और विज्ञान हूं ,
जब दमन चक्र चलेगा सूक्ष्मजीव तु मरेगा,
मेरी यह नियति नहीं समय मेरा प्रहरी नहीं ,
काल के कुचक्र ने मुझे कभी घेरा नहीं,
हे दुष्ट तू ना बच पाएगा हाय हाय चिल्लाएगा।
I value how your words captures your unique character. It feels like we’re having a thought-provoking conversation.