कहानी १
द्रोणाचार्य ने एक दिन अपने शिष्य युधिष्ठर से कहा कि वह गाँव में जाकर किसी बुरे व्यक्ति की खोज कर अचार्य को उसका नाम और पता बता दे। इसके बाद आचार्य ने दुर्योधन को बुलाकर गाँव में जाने को कहा कि वह वहाँ किसी अच्छे व्यक्ति की खोज कर उसका नाम और पता आचार्य को लाकर दे। आचार्य के दोनों शिष्य तीन दिन तक गाँव के एक- एक घर में गये। पर दोनों ही वहाँ से निराश होकर लौट आये। युधिष्ठर को कोई बुरा व्यक्ति नहीं मिला जबकि दुर्योधन को सारे गाँव में कोई अच्छा व्यक्ति नहीं मिला। सच है जो जैसा अच्छा या बुरा स्वयं होता है उसे सभी वैसे ही अच्छे या बुरे दिखाई देते हैं।
कहानी २
एक बार की बात है वशिष्ठ मुनि अपने शिष्यों के बीच बैठकर प्रवचन दे रहे थे। तभी जोर से एक भूकंप आया। शिष्य प्रवचन सुनना छोड़ बाहर भागने लगे। कुछ देर बाद जब भूकंप स्थिर हुआ तो सभी शिष्य अंदर लौट आए। उन्होंने देखा कि गुरु वशिष्ठ उसी प्रकार प्रवचन देने की मुद्रा में आंखें बंद कर बैठे है।एक शिष्य ने कौतूहलवश गुरु वशिष्ठ से पूछा, गुरुवर, भूकंप आया तो हम सब जान बचाने बाहर भाग गए पर आप अपनी जगह से हिले तक नहीं। क्या आपको डर नहीं लगता ? शिष्य की बात सुनकर गुरु वशिष्ठ ने जवाब दिया – वत्स, मैं भी भागा था। पर मैं तुम्हारी तरह बाहर नहीं भागा , मैं अपने ही भीतर भागा। तुम लोगों को बाहर भागने का अभ्यास है पर मुझे अपने भीतर भागने की आदत हो गई है।