कबीरा हरि के रूठते ,गुरु की शरणे बताएं।
कह कबीर गुरु रूठते, हरि नहिं होत सहाय।।
गुरु का महत्व भारतीय संस्कृति का मूलभूत आधार था। गुरु को भगवान से भी बड़ा दर्जा दिया गया था। गुरु का महत्व या सम्मान अर्थात शिक्षा का महत्व । आधुनिक काल में गुरु के महत्व की तरह ही शिक्षा का महत्व भी कम हो गया है। शिक्षा का तात्पर्य अध्यात्मिक की बजाए भौतिक रह गया है। सार्वभौमिक विकास के बजाय धन उपार्जन के लिए विद्या या शिक्षा ग्रहण की जाती है। इसका प्रभाव गुरु शिष्य परंपरा पर बहुत गहरा पड़ा है। अब इन रिश्तो में वह समर्पण भाव बहुत ही कम दिखाई देता है।
इस युग में छात्र और गुरु का संबंध परिणाम केंद्रित /रिजल्ट ओरिएंटेड(result oriented) हो गया है। हालांकि भारतीय संस्कृति और संस्कार के कारण यह रिश्ता अभी भी पश्चिमी देशों की तुलना में अधिक गहरे है। गुरु के स्थान पर शिक्षा का कार्यभार जिन्होंने संभाला उन्हें अध्यापक /शिक्षक/teacher, आचार्य और प्राचार्य/ प्राध्यापक/lecturer कहा जाता है। आइए इनमें अंतर जाने-
आचार्य, विशेष पूजा पाठ,कर्मकांडकराने वाले प्रमुख पण्डित को भी कहा जाता है।प्राचार्य हाई स्कूल,हायर सेकंडरी स्कूल, कालेज आदि का प्रमुख। प्राथमिक एवं माध्यमिक विद्यालय में प्रधानाध्यापक।संस्था प्रधान होने से,संस्था के सम्पूर्ण कार्य के जिम्मेदार।
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