भाग्य और पुरुषार्थ में अंतर

भाग्य और पुरुषार्थ में अंतर

भाग्य और पुरुषार्थ पर महान लोगों के विचार

1 कर्म, ज्ञान और भक्ति – ये तीनों जहां मिलते हैं वही सर्वश्रेष्ठ पुरुषार्थ है।

2 पुरुषार्थ ही सौभाग्य को सींचता है।

3 हारिए न हिम्मत , बिसारिए न हरिनामा।

4 भाग्य, पुरुषार्थी के पीछे चलता है।

5 मनुष्य अपने भाग्य का निर्माता स्वयं है।

6 जिन्हें भाग्य पर विश्वास नहीं होता, उनके कार्य पूरे नहीं होते।

7 करम गति टारै नाहि टरै।

8 कार्याणि उद्यमेन हि सिध्यंति न मनोरथः।

9 आपका लक्ष्य भाग्य से पूरा नहीं होगा इसके लिए पुरुषार्थ करना पड़ेगा।

10 लाख संभल कर चले चलने वाले , हादसे हो ही जाते हैं होने वाले।

11 तुलसी भरोसे राम के निश्चित होकर सोए, होनी तो होकर रहे अनहोनी न होय।

12 कर्मवान ,भाग्यवान होता है। कर्महीन ,भाग्यहीन  होता है।भाग्य और पुरुषार्थ में अंतर infographic

भाग्य और पुरुषार्थ एक दूसरे के पूरक हैं। जहां भाग्य हमारे पिछले जन्म के या अच्छे कर्मों के फल को प्रदर्शित करता है। वही पुरुषार्थ , कर्म के प्रत्यक्ष परिणाम को दर्शाता है। भाग्य हमें अच्छे कर्म को करने के लिए प्रेरित करता है और पुरुषार्थ से कर्म फल प्राप्त होता है। भाग्य और पुरुषार्थ कदम मिलाकर चलते हैं। अतः सफल जीवन की प्राप्ति के लिए दोनों का  सामंजस्य होना बहुत जरूरी है। इसलिए कहा भी गया है। एक पौंड पुरुषार्थ का एक टन भाग्य के समान मूल्य होता है। भगवान श्री कृष्ण ने गीता में यही कहा था कर्म (पुरुषार्थ)कर फल (भाग्य) की इच्छा मत कर। क्योंकि भाग्य का फल हमें कहां प्राप्त होगा यह हम नहीं जानते पर वह हमें जरूर प्राप्त होगा।
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