गुरु पर १० अनमोल विचार
- गुरु गोविंद दोऊ खड़े काके लागू पाय, बलिहारी गुरु आपकी गोविंद दियो बताए।
- गुरु की आज्ञा आवै, गुरु की आज्ञा जाय। कहे कबीर सो संत है, आवागमन नशाय।।
- गुरु कुम्हार शिष कुंभ है, गढ़ि गढ़ि काढ़ै खोट। अंतर हाथ सहार दै, बाहर बाहै चोट।।
- गुरु सामान पता नहीं, याचक सीस समान। तीन लोक की संपदा ,सो गुरु दीन्हों दान।।
- कुमति कीच चेला भरा ,गुरु ज्ञान जल होय ।जनम जनम का मोरचा पल में डारे धोय।।
- राम तजूं पै गुरु न बिसारूं। गुरु के सम हरि कूं न निहारुॅ।।
- कबीरा हरि के रूठते ,गुरु की शरणे बताएं। कह कबीर गुरु रूठते, हरि नहिं होत सहाय।।
- सतगुरु ब्रह्म स्वरूप है, मनुष्य भाव मत जान। देह भाव मानैं ‘दया ‘ते हैं पसू समान।।
- बे बिन गुरु कोई भेद न पावे ,धरती से आकाश को धावे। पहिले प्रीत गुरु से करैं, प्रेम नगर में तब पगुधरै।।
- राखी गुरु जौं कोंप विधाता। गुरु विरोध नहिं कोउ जग त्राता।।
कविता
गुरु की महिमा अपरंपार , करते हैं वह सबसे प्यार ।
देते हैं वह सबको ज्ञान, दूर करते जीवन का अज्ञान।
जीवन का महत्व समझाते , सबको सत्य की राह दिखाते।
ज्ञान धर्म का पाठ पढ़ाते ,अज्ञान से ज्ञान की ओर ले जाते।
सत्य का दीपक जलाकर, जीवन का अंधकार मिटाते।
उनका क्रोध भी प्रेरक बीज बन जाता, जो ठोकर खाकर फिर संभलना सीखता।
मुझे अपने गुरु पर है अभिमान, उत्साह सेें छु मैं ,लूॅगी सफलता का आसमान।