चेतन , अवचेतन और अचेतन मन का स्वरूप दार्शनिकों और वैज्ञानिकों के दृष्टिकोण से अलग-अलग है। अतः इस लेख में दोनों के विचारों के आधार पर चेतना के विभिन्न स्वरूपों का वर्णन किया गया है।
चेतना
चेतना का अर्थ- प्राणी मात्र में सब कुछ देखने ,समझने , सुनने और अनुभव करने वाला तत्व चेतना होता है, अर्थात जीवित होने का प्रमाण चेतना ही है। यदि इसे ही चेतना का अर्थ माना जाए तो सभी जीव जंतुओं में चेतना है ,परंतु आध्यात्मिक और दार्शनिक आधार पर चेतना का अर्थ बहुत विस्तृत है। अध्यात्म के अनुसार जिसको सिद्धियां , आत्मिक दृष्टि प्राप्त हो, जिसकी सुषुम्ना नाड़ी जागृत हो गई और वह सूक्ष्म रूप से संपूर्ण ब्रह्मांड में वितरण करने में सक्षम हो वही चेतन समरूप है। अर्थात चेतन अवस्था को ध्यान व योग के माध्यम से प्राप्त किया जाता है। यह शक्ति सब में नहीं होती और न ही सभी प्राणी चेतन शक्ति प्राप्त कर सकते हैं।यह शक्ति सिर्फ मनुष्य रूप में प्राप्त की जा सकती है , इसीलिए मानव स्वरूप को उत्तम माना गया है। उदाहरण- महाप्रभु चैतन्य , महात्मा बुद्ध, रामा कृष्ण परमहंस (विवेकानंद जी के गुरु) आदि चेतन अवस्था को प्राप्त कर चुके थे। हमारे शरीर में 10% ही चेतन शक्ति होती है। चेतन अर्थात consciousness का वैज्ञानिक आधार शारीरिक रूप से ही वर्णित है। उदाहरण- एक व्यक्ति की सप्ताह से कोमा में रहने के बाद चेतना consciousness लौट आई। अर्थात उसके जीवित रहने की शक्तियां पुनः जागृत हो गई।
अवचेतन
अवचेतन मन- चेतना का ही एक भाग है अवचेतन मन। हमारे मन में लगातार विचारों की धारा बहती रहती है। मन की गति से तीव्र गति किसी की नहीं है। वह पल भर में ही सारी दुनिया में घूम सकती है। स्मृतियां, विचारों का संश्लेषण-विश्लेषण , सूचनाएं , आंकड़े अवचेतन मन में एकत्र होते हैं। यहां तक की निंद्रा अवस्था में भी स्मृतियों और अनुभवों की छाया अवचेतन मन की ही सक्रियता दर्शाती है। हमारे मन का 50 से 60% भाग अवचेतन मन होता है। दार्शनिक और अध्यात्मिक आधार पर अवचेतन मन हमारी भौतिक इच्छाएं की पूर्ति के लिए ही प्रयत्नशील रहते हैं। अवचेतन मन सभी प्राणी मात्रा में होता है। मनुष्य भी यदि चेतन अवस्था को प्राप्त नहीं करते तो पूरा जीवन अवचेतन की अवस्था में गुजार देते हैं , अर्थात भौतिक कार्यों में ही गुजार देते हैं। वैज्ञानिक आधार से अवचेतन मन(subconscious mind) का अर्थ हमारे मस्तिक में चलने वाली काल्पनिक गतिविधियों से है जो सपनो या निंदा की अवस्था में हमारे मन में चलती रहती है।
अचेतन
अचेतन मन – चेतन और अवचेतन मन का ही एक भाग है अचेतन मन। हमारे मस्तिष्क का 30% से 40% तक मन अचेत अवस्था में ही रहता है। अचेतन मन सदैव सक्रिय रहता हैं। इसमें हमारे दमित इच्छाएं , महत्वकांक्षाएं और आकांक्षाएं होती हैं , जो बचपन से ही संग्रहित होना शुरू हो जाती हैं। अतःहमारे व्यवहार को प्रभावित करती रहती हैं। अचेत मन नैतिक मूल्य और संस्कारों से प्रभावित होता है, इसलिए नैतिक मूल्यों की शिक्षा बचपन से देना अनिवार्य है क्योंकि अचेत मन सदा सुख , भौतिकता और आकर्षण को महत्व देता है। अचेत मन में र्दुविचार , नकारात्मक विचार होने के कारण यह व्यक्ति में निराशा , हताशा , अवसाद , मनोरोग उत्पन्न करने का प्रमुख कारण बनती है। वैज्ञानिक आधार पर अचेत(unconscious) अर्थात बेहोश हो जाना या होश में ना रहना। उदाहरण -सिर पर चोट लगने से स्कूटर सवार कुछ देर के लिए अचेत हो गया, यानी बेहोश हो गया।
ध्यान और योग के द्वारा अवचेतन और अचेत मन को नियंत्रित किया जा सकता है और चेतन अवस्था को प्राप्त किया जा सकता है।
मुझे ऐसा लगता है कि सारा अस्तित्व अचेतन है और जब उस पर प्रकाश तरंग ( electro magnetic waves) का प्रभाव पड़ता है तब अवचेतन ( autonomous) क्रियान्वयन हेतु प्रयत्न में एक उर्जा का प्रभाव क्रियान्वित रहता है लेकिन इस प्रभाव पर लोम विलोम का नियंत्रण कर शकने की अवस्था को चेतन कहना चाहिए .
इसे यूं समझें कि पदार्थ अचेतन है उसमें उर्जा का आरोपण अवचेतन है और पदार्थ जब उर्जा पर नियंत्रण करता है तब वह चेतन है
अति उत्तम, हमारे सनातन ज्ञान को यही विज्ञान चाहिए।