आस्था , श्रद्धा और विश्वास  में अंतर

आस्था , श्रद्धा और विश्वास में अंतर

आस्था ,श्रद्धा और विश्वास मन को शक्ति देने वाली औषधियां है। प्रसिद्ध कविता की कुछ पंक्तियां हैं- मन के हारे हार है ,मन के जीते जीत।(द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी) अर्थात जीत -हार , सुख-दुख मन के भावों से प्रभावित होते हैं।

आस्था , श्रद्धा और विश्वास  में अंतर

आस्था– आस्था को प्राय  धर्म या मजहब के साथ ही जोड़ा जाता है और आस्थावान व्यक्ति को एक कट्टर मानसिकता वाले व्यक्ति के रूप में दर्शाया जाता है परंतु आस्था रखना हमारे जीवन के प्रति सकारात्मक भाव को भी दर्शाता है। यदि आप आस्थावान नहीं हो तो  आपका आशावान होना भी लगभग असंभव ही होगा। जिस तरह व्यक्ति को स्वस्थ जीवन के लिए आस्तिक होना जरूरी है उसी प्रकार आस्थावान होना भी जरूरी है। व्यक्ति किसी भी धर्म ,जाति ,मजहब का क्यों ना हो आस्थावान व्यक्ति कट्टर नहीं बल्कि सबके लिए संमभाव रखते हैं। क्योंकि उन्हें अपने प्रभु में अटूट विश्वास और श्रद्धा तथा समर्पण भाव होता है। अशिक्षा और अज्ञानता के कारण यदि कोई आपकी आस्था का नाजायज फायदा उठाएं और दूसरों के प्रति द्वेष भाव की भावना उत्पन्न करने की कोशिश करें तो आप सतर्क हो जाए क्योंकि आपका धर्म या मजहब प्रेम की शिक्षा देता है द्वेष की नहीं इस बात को सदा ही याद रखें अपनी आस्था का सकारात्मक उपयोग जन कल्याण के लिए करें।

श्रद्धा– श्रद्धा भावों का सागर होता है। व्यक्ति विशेष,कार्य के प्रति  पूज्य शुद्ध बुद्धि रखना और समर्पण भाव रखना श्रद्धा है। यदि श्रद्धा आपको कार्य के प्रति है तो आपकी सफलता निश्चित है परंतु यदि यह व्यक्ति विशेष पर है तो वह उसकी  मानसिकता पर निर्भर करता है कि आपको वह किस दिशा में लेकर जाए । अतः श्रद्धा को अंधविश्वास की तरफ ना ले जाए। श्रद्धा रखें क्योंकि यह एक सकारात्मक भाव है और परमार्थ  की कुंजी है। किसी अत्यंत पवित्र और महाशक्ति पर श्रद्धा निष्ठा होनी आवश्यक है। कलयुग में  कोई भी व्यक्ति संपूर्ण नहीं है अतः उसके गुणों  और अवगुणों के प्रति सचेत रहते हुए ही आप समर्पण भाव रखें अन्यथा 33 करोड़ देवी देवता हमारे पास है ही जो अनेक गुणों से संपूर्ण है। श्रद्धा का अर्थ है आत्मविश्वास और आत्मविश्वास का अर्थ है ईश्वर पर विश्वास । महात्मा गांधी

विश्वास– विश्वास को उत्पन्न किया जाता है यह स्वयं उत्पन्न नहीं होती और जो चीज उत्पन्न होती है वह नष्ट भी हो सकती है। अतः इसे बनाए रखना एक गंभीर चुनौती भी होता है। विश्वास, आस्था और श्रद्धा का एक कमजोर रूप होता है जिस पर तर्क , ज्ञान, विज्ञान ,अहंकार अपना प्रभाव डालता है। विश्वास में लचीलापन होता है कभी-कभी इसका यह रूप सकारात्मक भी होता है जैसे विज्ञान की खोजों के कारण अंधविश्वास को खत्म किया जा सकता है और शिक्षा के प्रचार- प्रसार से नए विश्वास उत्पन्न भी किए जा सकते हैं। सामाजिक जीवन का आधार विश्वास होता है यहां पर विश्वास, ऐतबार या भरोसे का प्रतीक है।

प्रेम सबसे करो विश्वास ,थोड़ो का करो। 
विश्वास जीवन है ,संशय मृत्यु है।
विश्वास का प्रधान अंग संतोष है।

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