आचरण , चरित्र और व्यवहार में अंतर

आचरण , चरित्र और व्यवहार में अंतर

आचरणमन भर चर्चा से कन भर आचरण अच्छा है।विनोबा भावे।

व्यक्ति का आचरण उसके व्यक्तित्व का दर्पण होते हैं इसीलिए कहा भी गया है , मानव को अपने उन कार्यों से  संतोष प्राप्त नहीं होता जो उसे भव्य तो बना दे किंतु दिव्य ना बना पाए। व्यक्ति का व्यवहार कुशल होना ही संपूर्ण नहीं होता। नैतिक मूल्य, सामाजिक जिम्मेवारी, धार्मिक एहसास और संस्कारों के प्रति सम्मान उसके आचरण और  व्यवहार में दिखाई देने भी अत्यंत आवश्यक है। आचरण का अर्थ सिर्फ दूसरों के प्रति जिम्मेवारी निभाना या दूसरों को खुश करना ही नहीं अपितु आत्म संतोष , शांति और सम्मान देने का भी एक अचूक उपाय होता है।

बिना आचरण के कोरा बौद्धिक ज्ञान वैसा ही है जैसा कि खुशबूदार मसाला लगाया हुआ मृतक।

महात्मा गांधी

आचरण बिना और अनुभव बिना ,केवल श्रवण से आत्मज्ञान की माधुरी  का पता कैसे चले ?

संत ज्ञानेश्वर

जिस कथन को आचरण में ना उतारा जाये उसमें शक्ति नहीं होती।

भगवान श्री सत्य साईं बाबा
आचरण, चरित्र और व्यवहार में अंतर

चरित्र – शिक्षा नहीं बल्कि चरित्र मनुष्य की सबसे बड़ी आवश्यकता है, वह उसका सबसे बड़ा सुरक्षा कवर है। इसलिए शिक्षा का उद्देश्य चरित्र निर्माण होना चाहिए। जीवन का तीन चौथाई आधार नेक चाल चलन है। चरित्र का निर्माण विचारधारा और रचनात्मक कार्यों के आधार पर बनता है। दृढ़ चरित्रवान लक्ष्य की ओर सीधा जाता है। चरित्रहीन व्यक्ति पशु के समान होता है जिसका कोई वैचारिक दृष्टिकोण नहीं होता। चरित्र निर्माण की नींव बचपन से ही पड़ने लगती है अतः बच्चे के परिवेश पर विशेष ध्यान देना चाहिए। जिस परिवार में महिलाओं को सम्मान मिलता है उस परिवार के बच्चे निश्चित ही चरित्रवान, धैर्यवान और संस्कारी होते हैं।

सच तो यह है कि गरीब हिंदुस्तान स्वतंत्र हो सकता है , लेकिन चरित्र को खोकर धनी बने हुए हिंदुस्तान का स्वतंत्र होना कठिन है।

महात्मा गांधी

एक चरित्रवान व्यक्ति को जो भी पद दिया जाएगा, वह उसके योग्य सिद्ध होगा।

महात्मा गांधी

चरित्र ऐसा हीरा है , जो अन्य सभी पाषाण खंडों को काट देता है।

वाल्टेयर

किसी मनुष्य का चरित्र बल ठीक उसी परिमाण में होता है , जितनी कठिनाइयों को वह पार कर चुकता है।

स्वामी रामतीर्थ

व्यवहारन तत्परस्य सन्दध्यात् प्रतिकूलं यदात्मनः । महाभारत अर्थात ऐसा व्यवहार दूसरे के साथ ना करें ,जो स्वयं के लिए प्रतिकूल है। हमारा व्यवहार हमेशा दूसरों की नजरों से ही आंका जाता है। दूसरों के प्रति हमारा नजरिया ,सहयोग व असहयोग  की भावना, सकारात्मक या नकारात्मक विचार , संबंध यह सब व्यवहार के अंतर्गत आते हैं। कहीं ना कहीं हमारा सामाजिक जीवन हमारे व्यवहार से प्रभावित रहता है। हमारे व्यवहार का मौलिक आधार हमारी संस्कृति , सभ्यता , नैतिकता , आचरण , परिवारिक मूल्य और चरित्र ही है। अतः हमें अपने व्यवहार के प्रति सतर्क रहना चाहिए और दूसरों के प्रति सम्मानजनक व्यवहार ही रखना चाहिए क्योंकि हमारा व्यवहार ही हमारा परिचय है।

स्वाभाविक व्यवहार ही तो व्यक्तित्व को प्रकट करता है।  अज्ञात 

भद्र व्यवहार ही शालीनता का प्रतीक है। अज्ञात

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