अंग्रेजों द्वारा “फूट डालो शासन करो ” की नीति के अंतर्गत आर्यों और द्रविणों को अलग-अलग नस्लों का दर्शाया गया, जो कि अब सैद्धांतिक और वैज्ञानिक रूप से असत्य साबित हो गया है।
आर्य और द्रविड़ दोनों एक ही नस्ल और एक ही देश के निवासी है इनमें मूलतः कोई अंतर नहीं है जहां तक भाषा और रंग का अंतर है यह भौगोलिक परिस्थितियों की वजह से है।
आदि शंकराचार्य जी ने एक शास्त्रार्थ में स्वयं का परिचय द्रविण शिशु कह कर दिया था। यहां तक की डॉक्टर भीमराव अंबेडकर ने अपनी पुस्तक शूद्र कौन में यह माना है कि आर्य कोई आक्रमणकारी नहीं वरन् भारत के ही नागरिक थे।
डॉ ज्ञानेश्वर चैबे ने लगभग 12000 भारतीयों के अनुवांशिक गुणों का अध्ययन किया और उनका विश्लेषण इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि आर्य और द्रविड़ भारत के ही निवासी हैं।
- 2009 में प्रकाशित पुस्तिका हुमन जेनेटिक्स के अनुसार भारतीय दलित ,जनजाति, ब्राह्मण सभी का एक ही अनुवांशिक इतिहास है।
“हिस्ट्री ऑफ इंडिया,” पुस्तक के अनुसार वेदों ,मनुस्मृतिओं और प्राचीन ग्रंथ में ऐसा कोई वर्णन या साक्ष्य नहीं है, जो यह दर्शाए की आर्य भारत के नागरिक नहीं वरन् बाहर से आए आक्रमणकारी थे।
इसके अतिरिक्त स्कंद पुराण में विंध्याचल से दक्षिण में रहने वाले पंचद्रविड़ और उत्तर में रहने वाले पंचगौड़ है। सभी दस ब्राह्मण जाति इन्हीं पर आधारित है। तो यह प्रश्न कि ब्राह्मण बाहर से आए थे और आर्य थे उसको तो हमारा स्कंद पुराण ही निराधार कर देता है।
वृतं यत्नेन संरक्षेद् वित्तमेति च याति च।
अक्षीणो वित्ततः क्षीणो वृत्ततस्तु हतो हतः।। (मनुस्मृतिः)
भावार्थ – इतिहास की प्रयास पूर्वक रक्षा करनी चाहिए। धन तो आता जाता है ,धन रहित होने पर कुछ नष्ट नहीं होगा। किंतु इतिहास और प्राचीन गौरव नष्ट कर देंनें पर विनाश निश्चित है।